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166 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


सरकारी रुपया ख़ाकर भागा था। हमें बड़ा धोखा हुआ।

जग्गो ने मौठे तिरस्कार से देखकर कह–अपनी नेकी-बदी अपने साथ है। मतलबी तो संसार है, कौन किसके लिए मरती है।

देवीदीन ने तीव्र स्वर में कहा-अपने मतलब के लिए जो दूसरों का गला काटे उसको जहर दे देना भी पाप नहीं है।

सहसा दो प्राणी आकर खड़े हो गए। एक गोरा, खूबसूरत लड़का था, जिसकी उम्र पंद्रह-सोलह साल से ज्यादा न थी। दूसरा अधेड़ था और सूरत से चपरासी मालूम होता था।

देवीदीन ने पूछा-किसे खोजते हो?

चपरासी ने कहा-तुम्हारा ही नाम देवीदीन है न? मैं 'प्रजा-मित्र' के दफ्तर से आया है। यह बाबू उन्हीं रमानाथ के भाई हैं जिन्हें शतरंज का इनाम मिला था। यह उन्हीं की खोज में दफ्तर गए थे। संपादकजी ने तुम्हारे पास भेज दिया। तो मैं जाऊं न?

यह कहता हुआ वह चला गया। देवीदीन ने गोपी को सिर से पांव तक देखा। आकृति रमा से मिलती थी। बोला-आओ बेटा, बैठो। कब आए घर से?

गोपी ने एक खटिक की दुकान पर बैठना शान के खिलाफ समझा। खड़ा-ख़ड़ा बोला-आज ही तो आया हूं। भाभी भी साथ हैं। धर्मशाले में ठहरा हुआ हूं।

देवीदीन ने खड़े होकर कहा-तो जाकर बहू को यहां लाओ ना ऊपर तो रमा बाबू को कमरा है ही, आराम से रहो। धरमसाले में क्यों पड़े रहोगे। नहीं चलो, मैं भी चलता हूं। यहीं सब तरह का आराम है।

उसने जग्गो को यह खबर सुनाई और ऊपर झाडू लगाने को कहकर गोपी के साथ धर्मशाले चल दिया। बुढिया ने तुरंत ऊपर जाकर झाडू लगाया, लपककर हलवाई की दुकान से मिठाई और दही लाई। सुराही में पानी भरकर रख दिया। फिर अपना हाथ-मुंह धोया, एक रंगीन साड़ी निकाली, गहने पहने और बन-ठनकर बहू की राह देखने लगी।

इतने में फिटन भी आ पहुंची। बुढिया ने जाकर जालपा को उतारा। जालपा पहले तो साग-भाजी की दुकान देखकर कुछ झिझकी, पर बुढ़िया का स्नेह-स्वागत देखकर उसकी झिझक दा हो गई। उसके साथ ऊपर गई, तो हर एक चीज इसी तरह अपनी जगह पर पाई मानों अपना ही घर हो।

जग्गो ने लोटे में पानी रखकर कहा-इसी घर में भैया रहते थे, बेटी आज पंद्रह रोज़ से घर सना पड़ा हुआ है। हाथ-मंह धोकर दही-चीनी खा लो न ,बेटी। भैया का हाल तो अभी तुम्हें न मालूम हुआ होगा।

जालपा ने सिर हिलाकर कहा-कुछ ठीक-ठीक नहीं मालूम हुआ। वह जो पत्र में छपता है,वहां मालूम हुआ था कि पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

देवीदीन भी ऊपर आ गया था। बोला-गिरफ्तार तो किया था, पर अब तो वह एक मुकदमे में सरकारी गवाह हो गए हैं। परागराज में अब उन पर कोई मुकदमा न चलेगा और साइत नौकरी-चाकरी भी मिल जाए।

जालपा ने गर्व से कहा-क्या इसी दर से वह सरकारी गवाह हो गए हैं? वहां तो उन