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172:प्रेमचंद रचनावली-5
 


थीं। जालपा ने इशारे से कुछ कहना चाहा; पर संकोच ने रोक दिया। ऐसा मालूम हुआ कि रमा की मोटर कुछ धीभी हो गई है। देवीदीन की आवाज भी सुनाई दी, मगर मोटर रुकी नहीं। एक ही क्षण में वह आगे बढ़ गई, पर रमा अब भी रह-रहकर खिड़की की ओर ताकता जाता था।

जालपा ने जीने पर आकर कहा-दादा !

देवीदीन ने सामने आकर कहा–भैया आ गए ! वह क्या मोटर जा रही है।

यह कहता हुआ वह ऊपर आ गया। जालपा ने उत्सुकता को संकोच से दबाते हुए कहा—तुमसे कुछ कहा?

देवीदीन-और क्या कहते, खाली राम-राम की। मैंने कुसल पूछी। हाथ से दिलासा देते चले गए। तुमने देखा कि नहीं?

जालपा ने सिर झुकाकर कहा-देखा क्यों नहीं? खिड़की पर जरा खड़ी थी।

'उन्होंने भी तुम्हें देखा होगा?' ।

'खिड़की की ओर ताकते तो थे।'

‘बहुत चकराएं होंगे कि यह कौन है।'

‘कुछ मालूम हुआ मुकदमा कब पेश होगा?

‘कल ही तो।'

'कल ही इतनी जल्दी तब तो जो कुछ करना है आज ही करना होगा। किसी तरह मेरा खत उन्हें मिल जाता, तो काम बन जाता।'

देवीदीन ने इस तरह ताका मानो कह रहा है, तुम इस काम को जितना आसान समझती हो उतना आसान नहीं है।

जालपा ने उसके मन का भाव तोड़कर कहा-क्या तुम्हें संदेह है कि वह अपना बयान बदलने पर राजी होंगे?

देवीदीन को अब इसे स्वीकार करने के सिवा और कोई उपाय न सूझा। बोला-हां, बहूजी, मुझे इसका बहुत अंदेसा है। और सच पूछो तो है भी जोखिम। अगर वह बयान बदल भी दें, तो पुलिस के पंजे से नहीं छूट सकते। वह कोई दूसरा इल्जाम लगा कर उन्हें पकड़ लेगी और फिर नया मुकदमा चलायेगी।

जालपा ने ऐसी नजरों से देखा, मानो वह इस बात से जरा भी नहीं डरती। फिर बोली-दादा, मैं उन्हें पुलिस के पंजे से बचाने का ठेका नहीं लेती। मैं केवल यह चाहती हूं कि हो सके तो अपयश से उन्हें बचा लें। उनके हाथों इतने घरों की बरबादी होते नहीं देख सकती। अगर वह सचमुच डकैतियों में शरीक होते, तब भी मैं यही चाहती की वह अंत तक अपने साथियों के साथ रहें और जो सिर पर पड़े उसे खुशी से झेलें। मैं यह कभी न पसंद करती कि वह दूसरों को दगा देकर मुखबिर बन जायं, लेकिन यह मामला तो बिल्कुल झूठ है। मैं यह किसी तरह नहीं बरदाश्त कर सकती कि वह अपने स्वार्थ के लिए झूठी गवाही दें। अगर उन्होंने खुद अपना बयान न बदला, तो मैं अदालत में जाकर सारा कच्चा चिट्ठा खोल दूगी, चाहे नतीजा कुछ भी हो। वह हमेशा के लिए मुझे त्याग दें, मेरी सूरत न देखें, यह मंजूर है, पर यह नहीं हो सकता कि वह इतना बड़ा कलंक माथे पर लगावें। मैंने अपने पत्र में सब लिख दिया है।