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174 : प्रेमचंद रचनावली-5
 

दुर्बल इच्छा ने उसे यह दिन दिखाया था और अब एक नए और संस्कृत जीवन का स्वप्न दिखा रही थी। शराबियों की तरह ऐसे मनुष्य रोज ही संकल्प करते हैं, लेकिन उन संकल्प का अंत क्या होता है। नए-नए प्रलोभन सामने आते रहते हैं और संकल्प की अवधि भी बढ़ती चली आती है। नए प्रभात का उदय कभी नहीं होता।

एक महीना देहात की सैर के बाद रमा पुलिस के सहयोगियों के साथ अपने बंगले पर जा रहा था। रास्ता देवीदीन के घर के सामने से था; कुछ दूर ही से उसे अपना कमरा दिखाई दिया। अनायास ही उसकी निगाह ऊपर उठ गई। खिड़की के सामने कोई खड़ा था। इस वक्त देवीदीन वहां क्या कर रहा है? उसने जरा ध्यान से देखा। यह तो कोई औरत है!मगर औरत कहां से आई? क्यों देवीदीन ने वह कमरा किराए पर तो नहीं उठा दिया? ऐसा तो उसने कभी नहीं किया।

मोटर जरा और समीप आई तो उस औरत का चेहरा साफ नजर आने लगा। रमा चौंक पड़ा। यह तो जालपा है ! बेशक जालपा है ! मगर नहीं, जालपा यहां कैसे आयगी? मेरा पता-ठिकाना उसे कहां मालूम ! कहीं बुढ्ढे ने उसे खत तो नहीं लिख दिया? जालपा ही है। नायब दारोगा मोटर चला रही थी। रमा ने बड़ी मित्रता के साथ कहा-सरदार साहब, एक मिनट के लिए रुक जाइए। मैं जरा देवीदीन से एक बात कर लूं। नायब ने मोटर जरा धीमी कर दी, लेकिन फिर कुछ सोचकर उसे आगे बढ़ा दिया।

रमा ने तेज होकर कहा-आप तो मुझे कैदी बनाए हुए हैं।

नायब ने खिसियाकर कहा-आप तो जानते हैं, डिप्टी साहब कितनी जल्द जामे से बाहर हो जाते हैं।

बंगले पर पहुंचकर रमा सोचने लगा, जालपा से कैसे मिलें। वहां जालपा ही थी, इसमें अब उसे कोई शुबहा न था। आंखों को कैसे धोखा देता। हृदय में एक ज्वाला-सी उठी हुई थी,क्या करूं? कैसे जाऊं? उसे कपड़े उतारने की सुधि भी न रही। पंद्रह मिनट तक वह कमरे के द्वार पर खड़ा रहा। कोई हिकमत न सूझी। लाचार पलंग पर लेटा रहा।

जरा ही देर में वह फिर उठा और सामने सहन में निकल आया। सड़क पर उसी वक्त बिजली रोशन हो गई। फाटक पर चौकीदार खड़ा था। रमा को उस पर इस समय इतना क्रोध आया, कि गोली मार दे। अगर मुझे कोई अच्छी जगह मिल गई, तो एक-एक से समझेंगा। तुम्हें तो डिसमिस कराके छोडूंगा। कैसा शैतान की तरह सिर पर सवार है। मुंह तो देखो जरा। मालूम होता है बकरी की दुम है। वाह रे आपकी पगड़ी। कोई टेकरी होने वाली कुली है। अभी कुत्ता भूंक पड़े, तो आप दुम दबाकर भागेंगे; मगर यहां ऐसे डटे खड़े हैं मनो किसी किले के द्वार की रक्षा कर रहे हैं।

एक चौकीदार ने आकर कहा-इसपिट्टर साहब ने बुलाया है। कुछ नए तवे मंगवाए हैं।

रमा ने झल्लाकर कह—मुझे इस वक्त फुरसत नहीं है।

फिर सोचने लगा। जालपा यहां कैसे आई? अकेले ही आई है या और कोई साथ है? जालिम ने बुड्ढे से एक मिनट भी बात नहीं करने दिया। जालपा पूछेगी तो जरूर, कि क्यों भागे थे। साफ-साफ कह दूंगा, उस समय और कर ही क्या सकता था। पर इन थोड़े दिनों के कष्ट ने