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18 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


बासन्ती ने कहा-जी चाहता है, कारीगर के हाथ चूम लें।

शहजादी बोली-चढ़ाव ऐसा ही होना चाहिए, कि देखने वाले फड़क उठे।

बासन्ती–तुम्हारी सास बड़ी चतुर जान पड़ती हैं, कोई चीज नहीं छोड़ी।

जालपा ने मुंह फेरकर कहा-ऐसा ही होगा।

राधा-और तो सब कुछ है, केवल चन्द्रहार नहीं है।

शहजादी--एक चन्द्रहार के न होने से क्या होता है बहन, उसकी जगह गुलूबंद तो है।

जालपा ने वक्रोक्ति के भाव से कहा- हां, देह में एक आंख के न होने से क्या होता है। और सब अंग होते ही हैं, आंखें हुई तो क्या, न हुई तो क्या ।

बालकों के मुंह से गंभीर बातें सुनकर जैसे हमें हंसी आ जाती है, उसी तरह जालपा के मुंह से यह लालसा से भरी हुई बातें सुनकर राधा और बासन्ती अपनी हंसी न रोक सकीं। हां, शहजादी को हंसी न आई। यह आभूषण-लालसा उसके लिए हंसने की बात नहीं, होने की बात थी। कृत्रिम सहानुभूति दिखाती हुई बोली-सब न जाने कहां के जंगली हैं कि और सब चीजें तो लाए, चन्द्रहार न लाए, जो सब गहनों का राजा हैं। लाला अभी आते हैं तो पृछती हूं कि तुमने यह कहां की रीति निकाली है-ऐसा अनर्थ भी कोई करता है।

राधा और बासन्ती दिल में कांप रही थीं कि जालपा कहीं ताड़ न जाय। उनका बस चलता तो शहजादी का मुंह बंद कर देती, बार-बार उसे चुप रहने का इशारा कर रही थी, मगर जालपा को शहजादी का यह व्यंग्य, संवेदना से परिपूर्ण जान पड़ा। सुजल नेत्र होकर बोली--क्या करोगी पूछकर बहन, जो होना था सो हो गया !

शहजादी-तुम पूछने को कहती हो, मैं रुलाकर छोडूंगी। मेरे चढ़ाव पर कंगन नहीं आया था, उस वक्त मन ऐसा खट्टा हुआ कि सारे गहनों पर लात मार दें। जब तक कंगन न बन गए, मैं नींद भर सोई नहीं।

राधा तो क्या तुम जानती हो, जालपा को चन्द्रहार न बनेगा? शहजादी-बनेगा तब बनेगा, इस अवसर पर तो नहीं बना। दस-पांच की चीज नहीं, कि जब चाहा बनवा लिया, सैकड़ों का खर्च हैं, फिर कारीगर तो हमेशा अच्छे नहीं मिलते।

जालपा का भग्न हदय शहजादी की इन बातों से मानो जी उठा, वह कंधे कट से बोली-यही तो में भी सोचती हूँ बहन, जब आज न मिला, तो फिर क्या मिलेगा ।

राधा और वासन्ती मन-ही-मन शहजादी को कोस रही थी, और थप्पड़ दिखा -दिखाकर धमका रही थी, पर शहजादी को इस वक्त तमाशा का मजा आ रहा था। बाली-नहीं, यह बात नहीं है जल्ली, आग्रह करने में सब कुछ हो सकता है, सास-ससुर को बार-बार याद दिलाती रहना। बहनोईजी से दो-चार दिन रूठे रहने से भी बहुत कुछ काम निकल सकता है। बस यही समझ लो कि घरवाले चैन न लेने पाएं, यह बात हरदम उनके ध्यान में रहे। उन्हें मालूम हो जाय कि बिना चन्द्रहार बनवाए कुशल नहीं। तुम जरा भी ढीली पड़ी और काम बिगड़ा।

राधा ने हंसी को रोकते हुए कहा-इनसे न बने तो तुम्हें बुला लें, क्यों ? अब उठेगी कि सारी रात उपदेश ही करती रहोगी ।

शहजादी-चलती हूं, ऐसी क्या भागड़ पड़ी है। हां, खूब याद आई, क्यों जल्ली, तेरी अम्मांजी के पास बड़ा अच्छा चन्द्रहार है। तुझे न देंगी?