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182:प्रेमचंदरचनावली-5
 


किया। अब मुझे मालूम हो गया कि मेरे ऊपर कोई इल्जाम नहीं। आप लोगों को चकमा था। पुलिस की तरफ से शहादत नहीं देना चाहता, मैं आज जज साहब से साफ कह दूंगा। बेगुनाहों का खून अपनी गर्दन पर न लूंगा।

दारोगा ने तेज होकर कहा-आपने खुद गबन तस्लीम किया था।

रमानाथ-मीजान की गलती थी। गबन न था। म्युनिसिपैलिटी ने मुझ पर कोई मुकदमा नहीं चलाया। |'यह आपको मालूम कैसे हुआ?'

'इससे आपको कोई बहस नहीं। मैं शहादत न दूंगा। साफ-साफ कह दूंगा, पुलिस ने मुझे धोखा देकर शहादत दिलवाई है। जिन तारीखों का वह वाकया है, उन तारीखों में मैं इलाहाबाद में था। म्युनिसिपल आफिस में मेरी हाजिरी मौजूद है।'

दारोगा ने इस आपत्ति को हंसी में उड़ाने की चेष्टा करके कहा-अच्छा साहब, पुलिस ने घोखा ही दिया, लेकिन उसका खातिरख्वाह इनाम देने को भी तो हाजिर है। कोई अच्छी जगह मिल जाएगी, मोटर पर बैठे हुए सैर करोगे। खुफिया पुलिस में कोई जगह मिल गई, तो चैन ही चैन है। सरकार की नजरों में इज्जत और रुसूख कितना बढ़ गया, यों मारे-मारे फिरते। शायद किसी दफ्तर में क्लर्को मिल जाती, वह भी बड़ी मुश्किल से। यहां तो बैठे-बिठाए तरक्की का दरवाजा खुल गया। अच्छी तरह कारगुजारी होगी, तो एक दिन रायबहादुर मुंशी रमानाथ डिप्टी सुपरिंटेंडेंट हो जाओगे। तुम्हें हमारा एहसान मानना चाहिए और आप उल्टे खफा होते हैं।

रमा पर इस प्रलोभन का कुछ असर न हुआ। बोला-मुझे क्लर्क बनना मंजूर है, इस तरह की तरक्की नहीं चाहता। यह आप ही को मुबारक रहे।

इतने में डिप्टी साहब और इंस्पेक्टर भी आ पहुंचे। रमा को देखकर इंस्पेक्टर साहब ने फरमाया-हमारे बाबू साहब तो पहले ही से तैयार बैठे हैं। बस इसी की कारगुजारी पर वारान्यारा है। रमा ने इस भाव से कहा, मानो मैं भी अपना नफा-नुकसान समझता हूं-जी हां, आज वारी-न्यारा कर दूंगा। इतने दिनों तक आप लोगों के इशारे पर चला, अब अपनी आंखों से देखकर चलूंगा।

इंस्पेक्टर ने दारोगा का मुंह देखा, दारोगा ने डिप्टी का मुंह देखा, डिप्टी ने इंस्पेक्टर की मुंह देखा। यह कहता क्या है? इंस्पेक्टर साहब विस्मित होकर बोले-क्या बात है? हलफ से कहता हूं, आप कुछ नाराज मालूम होते हैं।

रमानाथ-मैंने फैसला किया है कि आज अपना बयान बदल दूंगा। बेगुनाहों का खून नहीं कर सकता।

इंस्पेक्टर ने दया-भाव से उसकी तरफ देखकर कहा-आप बेगुनाहों का खून नहीं कर रहे हैं, अपनी तकदीर की इमारत खड़ी कर रहे हैं। हलफ से कहता हूं, ऐसे मौके बहुत कम आदमियों को मिलते हैं। आज क्या बात हुई कि आप इतने खफा हो गए? आपको कुछ मालूम है, दारोगा साहब? आदमियों ने तो कोई शोखी नहीं की? अगर किसी ने आपके मिजाज के खिलाफ कोई काम किया हो, तो उसे गोली मार दीजिए, हलफ से कहता हूं।