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194:प्रेमचंद रचनावली-5
 


ओर लगा हुआ था। बेचारा फांसी पा जायेगा। जिस वक्त उसने फांसी का हुक्म सुना होगा, उसकी क्या दशा हुई होगी। उसकी बूढ़ी मां और स्त्री यह खबर सुनकर छाती पीटने लगी होंगी। बेचारा स्कूल-मास्टर ही तो था, मुश्किल से रोटियां चलती होंगी। और क्या सहारा होगा? उनकी विपत्ति की कल्पना करके उसे रमा के प्रति उत्तेजनापूर्ण घृणा हुई कि वह उदासीन न रह सकी। उसके मन में ऐसा उद्वेग उठा कि इस वक्त वह आ जाये तो ऐसा धिक्कारू कि वह भी याद करें। तुम मनुष्य हो । कभी नहीं। तुम मनुष्य के रूप में राक्षस हो, राक्षस ! तुम इतने नीच हो कि उसको प्रकट करने के लिए कोई शब्द नहीं है। तुम इतने नीच हो कि आज कमीने से कमीना आदमी भी तुम्हारे ऊपर थूक रहा है। तुम्हें किसी ने पहले ही क्यों न मार डाला। इन आदमियों की जान तो जाती ही; पर तुम्हारे मुंह में तो कालिख न लगती। तुम्हारा इतना पतन हुआ कैसे । जिसका पिता इतना सच्चा, इतना ईमानदार हो; वह इतना लोभी, इतना कायर ।

शाम हो गई, पर देवीदीन न आया। जालपा बार-बार खिड़की पर खड़ी हो-होकर इधर-उधर देखती थी; पर देवीदीन का पता न था। धीरे-धीरे आठ बज गए और देवी न लौटा। सहसा एक मोटर द्वार पर आकर रुकी और रमा ने उतरकर जग्गो से पूछा-सब कुशल-मंगल है। ने दादी ! दादा कहां गए हैं।

जग्गो ने एक बार उसकी ओर देखा और मुंह फेर लिया। केवल इतना बोलीं-कहीं गए होंगे; मैं नहीं जानती।

रमा ने सोने की चार चूड़ियां जेब से निकालकर जग्गो के पैरों पर रख दीं और बोला—यह तुम्हारे लिए लाया हूँ दादी, पहनो, ढीली तो नहीं हैं?

जागो ने चूड़ियां उठाकर जमीन पर पटक दीं और आंखें निकालकर बोली-जहां इतना पाप समा सकता है, वहां चार चूड़ियों की जगह नहीं है । भगवान् की दया से बहुत चूड़ियां पहन चुकी और अब भी सेर-दो सेर सोना पड़ा होगा, लेकिन जो खाया, पहना, अपनी मिहनत की कमाई से, किसी का गला नहीं दबाया, पाप की गठरी सिर पर नहीं लादी, नीयत नहीं बिगाड़ी। उस कोख में आग लगे जिसने तुम-जैसे कपूत को जन्म दिया। यह पाप की कमाई लेकर तुम बहू को देने आए होगे । समझते होगे, तुम्हारे रुपयों की थैली देखकर वह लट्टू हो जाएगी। इतने दिन उसके साथ रहकर भी तुम्हारी लोभी आंखें उसे न पहचान सकीं। तुम जैसे राक्षस उस देवी के जोग न थे। अगर अपनी कुसल चाहते हो, तो इन्हीं पैरों जहां से आए हो वहीं लौट जाओ, उसके सामने जाकर क्यों अपना पानी उतरवाओगे। तुम आज पुलिस के हाथों जख्मी होकर, मार खाकर आए होते, तुम्हें सजा हो गई होती, तुम जेहल में डाल दिए गए होते तो बहू तुम्हारी पूजा करती, तुम्हारे चरन धो-धोकर पीती। वह उन औरतों में है जो चाहे मजूरी करे, उपास करें, फटे-चीथड़े पहनें, पर किसी की बुराई नहीं देख सकतीं। अगर तुम मेरे लड़के होते, तो तुम्हें जहर दे देती। क्यों खड़े मुझे जला रहे रहे हो। चले क्यों नहीं जाते। मैंने तुमसे कुछ ले तो नहीं लिया है।

रमा सिर झुकाए चुपचाप सुनता रहा। तब हित स्वर में बोला-दादी,मैंने बुराई की है। और इसके लिए मरते दम तक लज्जिते रहूंगा; लेकिन तुम मुझे जितना नीच समझ रही हो,उतना नीच नहीं है। अगर तुम्हें मालूम होता कि पुलिस ने मेरे साथ कैसी-कैसी सख्तियां कीं,