पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/१९५

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गबन:195
 


मुझे कैसी-कैसी धमकियां दीं, तो तुम मुझे राक्षस न कहतीं।

जालपा के कानों में इन आवाजों की भनक पड़ी। उसने जीने से झांककर देखा। रमानाथ खड़ा था। सिर पर बनारसी रेशमी साफा था, रेशम का बढ़िया कोट, आंखों पर सुनहली ऐनक। इस एक ही महीने में उसकी देह निखर आई थी। रंग भी अधिक गोरा हो गया था। ऐसी कति उसके चेहरे पर कभी न दिखाई दी थी। उसके अंतिम शब्द जालपा के कानों में पड़ गए, बाज की तरह टूटकर धम-धमकरती हुई नीचे आई और जहर में बुझे हुए नेत्रबाणों का उस पर प्रहार करती हुई बोली-अगर तुम सख्तियों और धमकियों से इतना दब सकते हो, तो तुम कायर हो। तुम्हें अपने को मनुष्य कहने का कोई अधिकार नहीं। क्या सख्तियों की थीं? जरा सुनें । लोगों ने तो हंसते-हंसते सिर कटा लिए हैं, अपने बेटों को मरते देखा है, कोल्हू में पेले जाना मंजूर किया है, पर सच्चाई से जौ-भर भी नहीं हटे। तुम भी तो आदमी हो, तुम क्यों धमकी में आ मए? क्यों नहीं छाती खोलकर खड़े हो गए कि इसे गोली का निशाना बना लो, पर मैं झूठ न बोलूंगा। क्यों नहीं सिर झुका दिया? देह के भीतर इसीलिए आत्मा रक्खी गई है कि देह उसकी रक्षा करे। इसलिए नहीं कि उसका सर्वनाश कर दे। इस पाप का क्या पुरस्कार मिला? जरा मालूम तो हो ।

रमा न दबी हुई आवाज से कहा-अभी तो कुछ नहीं।

जालपा ने सर्पिणी की भांति हुंकारकर कहा-यह सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई। ईश्वर करे, तुम्हें मुंह में कालिख लगाकर भी कुछ न मिले। मेरी यह सच्चे दिल से प्रार्थना है, लेकिन नहीं, तुम-जैसे मोम के पुतलों को पुलिस वाले कभी नाराज न करेंगे। तुम्हें कोई जगह मिलेगी और शायद अच्छी जगह मिले; मगर जिस जाल में तुम फंसे हो, उसमें से निकल नहीं सकते। झूठी गवाही, झूठे मुकदमें बनाना और पाप का व्यापार करना हो तुम्हारे भाग्य में लिख गया। जाओ शौक से जिंदगी के सुख लूटो। मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था और आज फिर कहती हूँ कि मेरा तुमसे कोई नाता नहीं है। मैंने समझ लिया कि तुम मर गए। तुम भी समझ लो कि मैं मर गई। बस, जाओ। मैं औरत हूं। अगर कोई धमकाकर मुझसे पाप कराना चाहे,तो चाहे उसे न मार सकू; अपनी गर्दन पर छुरी चला दूंगी। क्या तुममें औरतों के बराबर भी हिम्मत नहीं है?

रमा ने भिक्षुकों की भांति गिडगिड़ाकर कहा- तुम मेरा कोई उज़ न सुनोगी?

जालपा ने अभिमान से कहा-नहीं।

'तो मैं मुंह में कालिख लगाकर कहीं निकल जाऊ?'

'तुम्हारी खुशी ।

'तुम मुझे क्षमा न करोगी?'

'कभी नहीं, किसी तरह नहीं ।'

रमा एक क्षण सिर झुकाए खड़ा रहा,तब धीरे-धीरे बरामदे के नीचे जाकर जग्गो से बोला-दादी, दादा आएं तो कह देना, मुझसे जरा देर मिल लें। जहां कहें, आ जाऊँ?

जग्गों ने कुछ पिघलकर कहा–कल यहीं चले आना। रमा ने मोटर पर बैठते हए कहा-यहां अब न आऊंगा, दादी । मोटर चली गई तो जालपा ने कुत्सित भाव से कहा-मोटर दिखाने आए थे, जैसे