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198 प्रेमचंद रचनावली-5
 


हंसकर बोला- हुजूर तो बहुत दूर निकल आए। यहां से तो छ:-सात मील से कम न होगा, वह उधर चौरंगो की ओर रहते हैं।

रमा चौरंगी का रास्ता पूछकर फिर चला। नौ बज गए थे। उसने सोचा, जज साहब से मुलाकात न हुई,तो सारा खेल बिगड़ जाएगा। बिना मिले हटूंगा ही नहीं। अगर उन्होंने सुन लिया तो ठीक ही है,नहीं कल हाईकोर्ट के जजों से कहूंगा। कोई तो सुनेगा। सारा वृत्तांत समाचार-पत्रों में छपवा दूंगा, तब तो सबकी आंखें खुलेंगी।

मोटर तीस मील की चाल से चल रही थी। दस मिनट ही में चौरंगी आ पहुंची। यहां अभी तक वहीं चहल-पहल थी, मगर रेमा उसी जन्नाटे से मोटर लिए जाता था। सहसा एक पुलिसमैन ने लाल बत्ती दिखाई। वह रुक गया और बाहर सिर निकलकर देखा, तो वही दारोगाजी ।

दारोगा ने पूछा-क्या अभी तक बंगले पर नहीं गए? इतनी तेज मोटर ने चलाया कीजिए। कोई वारदात हो जायगी। कहिए, बेगम साहब से मुलाकात हुई? मैंने तो समझा था, वह भी आपके साथ होंगी। खुश तो खूब हुई होंगी।

रमा को ऐसा क्रोध आया कि मूंछेउखाड़ लें,पर बाते बनाकर बोला-जी हां, बहुत खुश हुई। बेहद । 'मैंने कहा था न, औरतों की नाराजी की वहीं दवा है। आप कांपे जाते थे।'

'मेरी हिमाकत थी।'

‘चलिए, मैं भी आपके साथ चलता हूं। एक बाजी ताश उड़े और जरा सरूर जमे। डिप्टी साहब और इंस्पेक्टर साहब आएंगे। जोहरा को बुलवा लेंगे। दो घड़ी की बहार रहेगी। अब आप मिसेज रमानाथ को बंगले ही पर क्यों नहीं बुला लेते। वहां उस खटिक के घर पड़ी हुई हैं।'

रमा ने कहा—अभी तो मुझे एक जरूरत से दूसरी तरफ जाना है। आप मोटर ले जाए। मैं पांव-पांव चला आऊंगा।

दारोगा ने मोटर के अंदर जाकर कहा-नही साहब, मुझे कोई जल्दी नहीं है। आप जहां चलना चाहें, चलिए। मैं जरा भी मुखिल न हूंगा।

रमा ने कुछ चिढ़कर कहा–लेकिन मैं अभी बंगले पर नहीं जा रहा है।

दारोगा ने मस्कराकर कहा-मैं समझ रहा हूं, लेकिन मैं जरा भी मुखिल न होगा। वहीं बेगम साहब

रमा ने बात काटकर कहा-जी नहीं,वहां मुझे नहीं जाना है।

दारोगा-तो क्या कोई दूसरा शिकार है? बंगले पर भी आज कुछ कम बहार न रहेगी। वहीं अपिके दिल-बहलाव का कुछ सामान हाजिर हो जायगा।

रमा ने एकबारगी आंखें लाल करके कहा-क्या आप मुझे शोहदा समझते हैं? मैं इतना जलील नहीं हूं।

दारोगा ने कुछ लज्जित होकर कहा-अच्छा साहब,गुनाह हुआ,माफ कीजिए। अब कभी ऐसी गुस्ताखी न होगी, लेकिन अभी आप अपने को खतरे से बाहर न समझें। मैं आपको किसी ऐसी जगह न जाने दूंगा,जहां मुझे पूरा इत्मीनान न होगा। आपको खबर नहीं,आपके