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गबन : 207
 


रमा ने कड़ककर कहा-जी हां, मैंने पट्टा लिखा लिया है।

दारोगा--तो आपका पट्टा खारिज !

रमानाथ-मैं कहता हूं, यहां से चले जाइए।

दारोगा—अच्छा ! अब तो मेंढकी को भी जुकाम पैदा हुआ ! क्यों न हो । चलो जोहरा, इन्हें यहां बकने दो।

यह कहते हुए उन्होंने जोहरा का हाथ पकड़कर उठाया।

रमा ने उनके हाथ को झटका देकर कहा-मैं कह चुका, आप यहां से चले जाएं। जोहरा इस वक्त नहीं जा सकती। अगर वह गई, तो मैं उसकी और आपका-दोनों का खून पी जाऊंगा। जोहरा मेरी है, और जब तक मैं हूँ, कोई उसकी तरफ आंख नहीं उठा सकता।

यह कहते हुए उसने दारोगा साहब का हाथ पकड़कर दरवाजे के बाहर निकाल दिया और दरवाजा जोर से बंद करके सिटकनी लगा दी। दारोगाजी बलिष्ठ आदमी थे, लेकिन इस वक्त नशे ने उन्हें दुर्बल बना दिया था । बाहर बरामदे में खड़े होकर वह गालियां बकने और द्वार पर ठोकर मारने लगे।

रमा ने कहा-कहो तो जाकर बचा को बरामदे के नीचे ढकेल दें। शैतान का बच्चा ।

जोहरा–बकने दो, आप ही चला जायगा।

रमानाथ–चला गया।

जोहरा ने मगन होकर कहा-तुमने बहुत अच्छा किया, सुअर को निकाल बाहर किया। मुझे ले जाकर दिक करता। क्या तुम सचमुच उसे मारते?

रमानाथ-मैं उसकी जान लेकर छोड़ता। मैं उस वक्त अपने आपे में न था। न जाने मुझमें उस वक्त कहां से इतनी ताकत आ गई थी।

जोहरा-और जो वह कल से मुझे न आने दे तो?

रमानाथ-कौन, अगर इस बीच में उसने जरा भी भांजी मारी, तो गोली मार दूंगा । वह देखो, ताक परे पिस्तौल रक्खा हुआ है। तुम अब मेरी हो, जोहरा । मैंने अपना सब कुछ तुम्हारे कदमों पर निसार कर दिया और तुम्हारा सब कुछ पाकर ही मैं संतुष्ट हो सकता हूं। तुम मेरी हो, मैं तुम्हारा हूं। किसी तीसरी औरत या मर्द को हमारे बीच में आने का मजाज नहीं है जब तक मैं मर न जाऊं।

जोहरा की आंखें चमक रही थीं । उसने रमा की गरदन में हाथ डालकर कहा-ऐसी बात मुंह से न निकालो, प्यारे !

अड़तालीस

सारे दिन रमा उद्वेग के जंगलों में भटकता रहा। कभी निराशा की अंधकारमय घाटियां सामने आ जातीं, कभी आशा की लहराती हुई हरियाली । जोहरा गई भी होगी ? यहां से तो बड़े लंबे-चौड़े वादे करके गई थी। उसे क्या गरज है? आकर कह देगी, मुलाकात ही नहीं हुई। कहीं