पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/२०९

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गबन : 209
 


नहीं आए। या तो रात की घटना से रुष्ट या लज्जित थे। या कहीं बाहर चले गए। रमा ने किसी से इस विषय में कुछ पूछा भी नहीं।

सभी दुर्बल मनुष्यों की भांति रमा भी अपने पतन से लज्जित था। वह जब एकांत में बैठता, तो उसे अपनी दशा पर दुःख होता—क्यों उसकी विलासवृत्ति इतनी प्रबल है? यह इतना विवेक-शून्य न था कि अधोगति में भी प्रसन्न रहता; लेकिन ज्योहीं और लोग आ जाते, शराब की बोतल आ जाती, जोहरा सामने आकर बैठ जाती, उसका सारा विवेक और धर्म-ज्ञान भ्रष्ट हो जाता।

रात के दस बज गए; पर जोहरा का कहीं पता नहीं। फाटक बंद हो गया। रमा को अब उसके आने की आशा न रही ; लेकिन फिर भी उसके कान लगे हुए थे। क्या बात हुई? क्या जालपा उसे मिली ही नहीं या वह गई ही नहीं? उसने इरादा किया अगर कल जोहरा न आई, तो उसके घर पर किसी को भेजेंगे। उसे दो-एक झपकियां आईं और सबेरा हो गया। फिर वहीं विकलता शुरू हुई। किसी को उसके घर भेजकर बुलवाना चाहिए। कम-से-कम यह तो मालूम हो जाय कि वह घर पर है या नहीं।

दारोगा के पास जाकर बोला-रात तो आप आपे में न थे।

दारोगा ने ईर्ष्या को छिपाते हुए कहा-यह बात न थी। मैं महज आपको छेड़ रहा था।

रमानाथ--जोहरा रात आई नहीं । जरा किसी को भेजकर पता तो लगवाइए, बात क्या है। कहीं नाराज तो नहीं हो गई?

दारोगा ने बेदिली से कहा-उसे गरज होगा खुद आएगी। किसी को भेजने की जरूरत नहीं है।

रमा ने फिर आग्रह न किया। समझ गया, यह हज़रत रात बिगड़ गए। चुपके से चला आया। अब किससे कहे? सबसे यह बात कहना लज्जास्पद मालूम होता था। लोग समझेंगे, यह महाशय एक ही रसिया निकले। दारोगा से तो थोड़ी-सी घनिष्ठता हो गई थी।

एक हफ्ते तक उसे जोहरा के दर्शन न हुए। अब उसके आने की कोई आशा न थी। रमा ने सोचा, आखिर बेवफा निकली। उससे कुछ आशा करना मेरी भूल थी। या मुमकिन है, पुलिस अधिकारियों ने उसके आने की मनाही कर दी हो। कम-से-कम मुझे एक पत्र तो लिख सकती थी। मुझे कितना धोखा हुआ। व्यर्थ उससे अपने दिल की बात कही। कहीं इन लोगों से न कह दे, तो उल्टी आंतें गले पड़ जायं; मगर जोहरा बेवफाई नहीं कर सकती। रमा की अंतरात्मा इसकी गवाही देती थी । इस बात को किसी तरह स्वीकार न करती थी। शुरु के दस-पांच दिन तो जरूर जोहरा ने उसे लुब्ध करने की चेष्टा की थी। फिर अनायास ही उसके व्यवहार में परिवर्तन होने लगा था। वह क्यों बार-बार सजल-नेत्र होकर कहती थी, देखो बाबूजी, मुझे भूल न जाना। उसकी वह हसरत भरी बात याद आ-आकर कपट की शंका को दिल से निकाल देतीं। जरूर कोई न कोई नई बात हो गई है। वह अक्सर एकांत में बैठकर जोहरा की याद करके बच्चों की तरह रोता। शराब से उसे घृणा हो गई। दारोगाजी आते, इंस्पेक्टर साहब आते पर, रमा को उनके साथ दस-पांच मिनट बैठना भी अखरता। वह चाहता था, मुझे कोई न छेड़े, कोई न बोले। रसोइया खाने को बुलाने आता, तो उसे घुड़क देता। कहीं घूमने या सैर करने