पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/२१३

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लेकिन दस ही कदम के बाद फिर रुककर बोलीं-मैंने आपका नाम तो पूछा ही नहीं। अभी तुमसे बातें करने से जी नहीं भरा। देर न हो रही हो तो आओ; कुछ देर गपशप करें।

मैं तो यह चाहती ही थी। अपना नाम जोहरा बतला दिया।

रमा ने पूछा-सच।

जोहरा-हां, हरज क्या था। पहले तो जालपा भी जरा चौंकी, पर कोई बात न थी। समझ गई, बंगाली मुसलमान होगी। हम दोनों उसके घर गईं। उस जरा-से कठघरे में न जाने वह कैसे बैठती हैं। एक तिल भी जगह नहीं। कहीं मटके हैं, कहीं पानी, कहीं खाट, कहीं बिछावन। सौल और बदबू से नाक फटी जाती थी। खाना तैयार हो गया था। दिनेश की बहू बरतन धो रही थी जालपा ने उसे उठा दिया-जाकर बच्चों को खिलाकर सुला दो, मैं बरतन धोए देती हूं। और खुद बरतन मांजने लगीं। उनकी यह खिदमत देखकर मेरे दिल पर इतना असर हुआ कि मैं भी वहीं बैठ गई और मांजे हुए बरतनों को धोने लगी। जालपा ने मुझे वहां से हट जाने के लिए कहा; पर मैं न हटी। बराबर बरतन धोती रही। जालपा ने तब पानी का मटका अलग हटाकर कहा-मैं पानी न दूंगी,तुम उठ जाओ, मुझे बड़ी शर्म आती है,तुम्हें मेरी कसम,हट जाओ,यहां आना तो तुम्हारी सजा हो गई,तुमने ऐसा काम अपनी जिंदगी में क्यों किया होगा |मैंने कहा-तुमने भी तो कभी नहीं किया होगा,जब तुम करती हो,तो मेरे लिए क्या हरज है।

जालपा ने कहा-मेरी और बात है।

मैंने पूछा-क्यों? जो बात तुम्हारे लिए है, वही मेरे लिए भी है। कोई महरी क्यों नहीं रख लेती हो?

जालपा ने कहा-महरियां आठ-आठ रुपये मांगती हैं।

मैं बोली- मैं आठ रुपये महीना दे दिया करूंगी।

जालपा ने ऐसी निगाहों से मेरी तरफ देखा, जिसमें सच्चे प्रेम के साथ सच्चा उल्लास,सच्चा आशीर्वाद भरा हुआ था। वह चितवन । आह!कितनी पाकीजा थी,कितनी पाक करने वाली।उनकी इस बेगरज खिदमत के सामने मुझे अपनी जिंदगी कितनी जलन, कितनी काबिले नफरत मालूम हो रही थी। उन बरतनों के धोने में मुझे जो आनंद मिला, उसे मैं बयान नहीं कर सकती।

बरतन धोकर उठीं, तो बुढ़िया के पांव दबाने बैठ गईं। मैं चुपचाप खड़ी थी। मुझसे बोलीं- तुम्हें देर हो रही हो तो जाओ, कल फिर आना।

मैंने कहा-नहीं, मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचाकर उधर ही से निकल जाऊंगी।

गरज नौ बजे के बाद वह वहां से चलीं। रास्ते में मैंने कहा-जालपा, तुम सचमुच देवी हो।

जालपा ने छूटते ही कहा-जोहरा,ऐसा मत कहो। मैं खिदमत नहीं कर रही हूं,अपने पापों का प्रायश्चित कर रही हूं। मैं बहुत दु:खी हूं। मुझसे बड़ी अभागिनी संसार में न होगी।

मैंने अनजान बनकर कहा-इसका मतलब मैं नहीं समझी।

जालपा ने सामने ताकते हुए कहा—कभी समझ जाओगी। मेरा प्रायश्चित इस जन्म में न पूरा होगा। इसके लिए मुझे कई जन्म लेने पड़ेंगे।