पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/२२१

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बयानों ने पुलिस की बखिया उधेड़ दी। जोहरा ने तो लिखा था कि मुझे पचास रुपए रोज इसलिए दिए जाते थे कि रमानाथ को बहलाती रहूं और उसे कुछ सोचने या विचार करने का अवसर न मिले। पुलिस ने इन बयानों को पढ़ा तो दांत पीस लिए। जोहरा और जालपा, दोनों कहीं और जा छिपीं, नहीं तो पुलिस ने जरूर उनकी शरारत का मजा चखाया होता।

आखिर दो महीने के बाद फैसला हुआ। इस मुकदमे पर विचार करने के लिए एक सिविलियन नियुक्त किया गया। शहर के बाहर एक बंगले में विचार हुआ, जिसमें ज्यादा भीड़-भाड़ न हो, फिर भी रोज दस-बारह हजार आदमी जमा हो जाते थे। पुलिस ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया कि मुलजिमों में कोई मुखबिर बन जाए, पर उसका उद्योग न सफल हुआ। दारोगाजी चाहते तो नई शहादतें बना सकते थे, पर अपने अफसरों की स्वार्थपरता पर वह इतने खिन्न हुए कि दूर से तमाशा देखने के सिवा और कुछ न किया। जब सारा यश अफसरों को मिलता और सारा अपयश मातहतों को, तो दारोगाजी को क्या गरज पड़ी थी कि नई शहादतों की फिक्र में सिर खपाते। इस मामले में अफसरों ने सारा दोष दारोगा ही के सिर मढ़ा, उन्हीं की बेपरवाही से रमानाथ हाथ से निकला। अगर ज्यादा सख्ती से निगरानी की जाती, तो जालपा कैसे उसे खत लिख सकती थी और वह कैसे रात को उससे मिल सकता था।

ऐसी दशा में मुकदमा उठा लेने के सिवा और क्या किया जा सकता था। तबेले की बला बंदर के सिर गई। दारोगा तनज्जुल हो गए और नायब दारोगा का तराई में तबादला कर दिया गया।

जिस दिन मुलजिमों को छोड़ा गया, आधा शहर उनका स्वागत करने को जमा था। पुलिस ने दस बजे रात को उन्हें छोड़ा, पर दर्शक जमा हो ही गए। लोग जालपा को भी खींच ले गए। पीछे-पीछे देवीदीन भी पहुँचा। जालपा पर फूलों की वर्षा हो रही थी और 'जालपादेवी की जय!' से आकाश गूंज रहा था।

मगर रमानाथ की परीक्षा अभी समाप्त न हुई थी? उसपर दरोग-बयानी का अभियोग चलाने का निश्चय हो गया।

इक्यावन

उसी बंगले में ठीक दस बजे मुकदमा पेश हुआ। सावन की झड़ी लगी हुई थी। कलकत्ता दलदल हो रहा था, लेकिन दर्शकों का एक अपार समूह सामने मैदान में खड़ा था। महिलाओं में दिनेश की पत्नी और माता भी आई हुई थीं। पेशी से दस-पंद्रह मिनट पहले जालपा और जोहरा भी बंद गाड़ियों में आ पहुंचीं। महिलाओं को अदालत के कमरे में जाने की आज्ञा मिल गई।

पुलिस की शहादतें शुरू हुई। डिप्टी सुपरिटेंडेंट, इंस्पेक्टर, दारोगा, नायब दारोगा–सभी के बयान हुए। दोनों तरफ के वकीलों ने जिरहें भी की, पर इन काररवाइयों में उल्लेखनीय कोई बात न थी। जाब्ते की पाबंदी की जा रही थी। रमानाथ का बयान हुआ, पर उसमें भी कोई नई बात न थी। उसने अपने जीवन के गत एक वर्ष का पूरा वृत्तांत कह सुनाया। कोई बात न छिपाई, वकील के पूछने पर उसने कहा–जालपा के त्याग, निष्ठा और सत्य-प्रेम ने मेरी आँखें खोली और उससे भी ज्यादा जोहरा के