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गबन : 23
 


कोई एक हजार रुपया दे देता, तो वह उसका उम्रभर के लिए गुलाम हो जाता।। दयानाथ ने पूछा-कोई बात सूझी?

'मुझे तो कुछ नहीं सूझता।'

'कोई उपाय सोचना ही पड़ेगा।'

'आप ही सोचिए, मुझे तो कुछ नहीं सूझता।'

'क्यों नहीं उससे दो-तीन गहने मांग लेते? तुम चाहो तो ले सकते हो, हमारे लिए मुश्किल है।'

'मुझे शर्म आती है।'

'तुम विचित्र आदमी हो, न खुद मांगोगे ने मुझे मांगने दोगे, तो आखिर यह नाव कैसे चलेगी? मैं एक बार नहीं, हजार बार कह चुका कि मुझसे कोई आशा मते रक्खो। अपने आखिरी दिन जेल में नहीं काट सकता। इसमें शर्म की क्या बात है, मेरी समझ में नहीं आती। किसके जीवन में ऐसे कुअवसर नहीं आते ? तुम्हीं अपनी मां से पूछो।'

जागेश्वरी ने अनुमोदन किया—मुझसे तो नहीं देखा जाता था कि अपना आदमी चिंता में पड़ा रहे, मैं गहने पहने बैठी रहूं। नहीं तो आज मेरे पास भी गहने न होते ? एक-एक करके सब निकल गए। विवाह में पांच हजार से कम का चढ़ाव नहीं गया था, मगर पांच ही साल में सब स्‍वाहा हो गया। तब से एक छल्ला बनवाना भी नसीव न हुआ।।

दयानाथ जोर देकर बोले–शर्म करने का यह अवसर नहीं है। इन्हें मांगना पड़ेगा।

रमानाथ ने झेंपते हुए कहा-मैं मांगे तो नहीं सकता, कहिए उठा लाऊं।

यह कहते-कहते लज्जा, क्षोभ और अपनी नीचता के ज्ञान से उसकी आंखें सजल हो गई।

दयानाथ ने भौंचक्के होकर कहा-उठा लाओगे, उससे छिपाकर?

रमानाथ ने तीव्र कंठ से कहा-और आप क्या समझ रहे हैं?

दयानाथ ने माथे पर हाथ रख लिया, और कि क्षण के बाद आहत कंठ से बोले- नहीं, मैं ऐसा न करने दूँगा। मैंने जाल कभी नहीं किया, और न कभी करूंगा। वह भी अपनी बहू के साथ ! छि:-छि:, जो काम सीधे से चल सकता है, उसके लिए यह फरेब? कहीं उसकी निगाह पड़ गई, तो समझते हो, वह तुम्हें दिल में क्या समझेगी? मांग लेना इससे कहीं अच्छा है।

रमानाथ-आपको इससे क्या मतलब। मुझसे चीजें ले लीजिएगा, मगर जब आप जानते थे, यह नौबत आएगी, तो इतने जेवर ले जाने की जरूरत ही क्या थी व्यर्थ की विपत्ति मोल ली। इससे कई लाख गुना अच्छी था कि आसानी से जितना ले जा सकते, उतना ही ले जाते। उस भोजन से क्या लाभ कि पेट में पीड़ा होने लगे? मैं तो समझ रहा था कि आपने कोई मार्ग निकाल लिया होगा। मुझे क्या मालूम था कि आप मेरे सिर यह मुसीबतों की करो पटक देंगे। वरना मैं उन चीजों को कभी न ले जाने देता।

दयानाथ कुछ लज्जित होकर बोले-इतने पर भी चन्द्रहार न होने से वहां हाय-तोबा मच गई।

रमानाथ-उस हाय-तोबा से हमारी क्या हानि हो सकती थी। जब इतना करने पर भी हाय-तोबा मच गई, तो मतलब भी तो न पूरा हुआ। उधर बदनामी हुई, इधर यह आफत सिर पर