पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/२३०

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ओझल हो गए। केवल एक उजली-सी चीज किनारे की ओर चली आ रही थी। वह एक रेले में तट से कोई बीस गज तक आ गई। समीप से मालूम हुआ, स्त्री है। जोहरा, जालपा और रमा–तीनों खड़े थे। स्त्री की गोद में एक बच्चा भी नजर आता था। दोनों को निकाल लाने के लिए तीनों विकल हो उठे, पर बीस गज तक तैरकर उस तरफ जाना आसान न था। फिर रमा तैरने में बहुत कुशल न था। कहीं लहरों के जोर में पांव उखड़ जाएं, तो फिर बंगाल की खाड़ी के सिवा और कहीं ठिकाना न लगे।

जोहरा ने कहा-मैं जाती हूं।

रमा ने लजाते हुए कहा-जाने को तो मैं तैयार हूं, लेकिन वहां तक पहुंच भी सकूंगा,इसमें संदेह है। कितना तोड़ है।

जोहरा ने एक कप पानी में रखकर कहा-नहीं, मैं अभी निकाल लाती हूं।

वह कमर तक पानी में चली गई। रमा ने सशंक होकर कहा-क्यों नाहक जान देने जाती हो। वहां शायद एक गड्ढा है। मैं तो जा ही रहा था।

जोहरा ने हाथों से मना करते हुए कहा-नहीं-नहीं, तुम्हें मेरी कसम, तुम न आना। मैं अभी लिए आती हूं। मुझे तैरना आता है।

जालपा ने कहा-लाश होगी और क्या ।

रमानाथ–शायद अभी जान हो।

जालपा-अच्छा, तो जोहरी तो तैर भी लेती है। जभी हिम्मत हुई।

रमा ने जोहरा की ओर चिंतित आंखों से देखते हुए कहा-हां, कुछ-कुछ जानती तो हैं। ईश्वर करे लौट आएं। मुझे अपनी कायरता पर लज्जा आ रही है।

जालपा ने बेहयाई से कहा-इसमें लज्जा की कौन-सी बात है। मरी लाश के लिए जान को जोखिम में डालने से फायदा? जीती होती, तो मैं खुद तुमसे कहती, जाकर निकाल लाओ।

रमा ने आत्म-धिक्कार के भाव से कहा यहां से कौन जान सकता है, जान है या नहीं। सचमुच बाल-बच्चों वाला आदमी नामर्द हो जाता है। मैं खड़ा रहो और जोहरा चली गई।

सहसा एक जोर की लहर आई और लाश को फिर धारा में बहा ले गई। जोहरा लाश के पास पहुंच चुकी थी। उसे पकड़कर खींचना ही चाहती थी कि इस लहर ने उसे दूर कर दिया। जोहरा खुद उसके जोर में आ गई और प्रवाह की ओर कई हाथ बह गई। वह फिर संभली, पर एक दूसरी लहर ने उसे फिर ढकेल दिया।

रमा व्यग्र होकर पानी में कूद पड़ा और जोर-जोर से पुकारने लगा–जोहरा! जोहरा! मैं आता हूँ।

मगर जोहरों में अब लहरों से लड़ने की शक्ति न थी। वह वेग से लाश के साथ ही धारे में बही जा रही थी। उसके हाथ-पांव हिलना बंद हो गए थे।

एकाएक एक ऐसा रेला आया कि दोनों ही उसमें समा गईं। एक मिनट के बाद जोहरा के काले बाल नजर आए। केवल एक क्षण तक । यही अंतिम झलक थी। फिर वह नजर न आई।

रमा कोई सौ गज तक जोरों के साथ हाथ-पांव मारता हुआ गया, लेकिन इतनी ही दूर में लहरों के वेग के कारण उसका दम फूल गया। अब आगे जाय कहां? जोहरा का तो कहीं पता भी न था। वहीं आखिरी झलक आंखों के सामने थी।

किनारे पर जालपा खड़ी हाय-हाय कर रही थी। यहां तक कि वह भी पानी में कूद पड़ी।