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कर्मभूमि : 257
 

काले खां जरा भी विचलित न हुआ, बोला----यह तो तुम बिल्कुल नई बात कहते हो भैया । लाला इस नीति पर चलते, तो आज महाजन न होते। हजारों रुपये की चीज तो मैं ही दे गया हूंगा। अंगनू, महाजन, भिखारी, हींगन, सभी से लाला का व्यवहार है। कोई चीज हाथ लगी और आंख बंद करके यहां चले आए, दाम लिया और घर की राह ली। इसी दूकान से बाल-बच्चों का पेट चलता है। कांटा निकलकर तीन लो। दस तोले से कुछ ऊपर ही निकलेगा,

मगर यहां पुरानी जजमानी है, लाओ डेढ़ सौ ही दो, अब कहां दौड़ते फिर?

अमर ने दृढ़ता से कहा-मैंने कह दिया मुझे इसकी जरूरत नहीं।

"पछताओगे लाला, खड़े-खड़े ढाई सौ में बेच लोगे।"

"क्यों सिर खा रहे हो, मैं इसे नहीं लेना चाहता।"

"अच्छा लाओ, सौ ही रुपये दे दो। अल्लाह जानता है, बहुत बल खाना पड़ रहा है, पर एक बार घाटा ही सही।"

"तुम व्यर्थ मुझे दिक रहे हो। मैं चोरी का माल नहीं लूंगा, चाह लाख की चीज धेले में मिले। तुम्हें चोरी करते शर्म भी नहीं आती ! ईश्वर ने हाथ-पांव दिए हैं, खासे मोटे- ताजे आदमी हो, मजदूरी क्यों नहीं करते दूसरों का माल उड़ाकर अपनी दुनिया और आक़बत दोनों खराब कर रहे हो।"

काले खां ने ऐसा मुंह बनाया, मानो एसी बकवास बहुत सुन चुका है और बोला - ता तुम्हें नहीं लेना है?

"नहीं।"

"पचास देते हो?"

"एक कोड़ी नहीं।"

काले खां ने कङा उठाकर कमर में रख लिए और दुकान के नीचे उतर भया। पर एक क्षण में फिर लौटकर बोला--अच्छा तीस रूपये ही दे दो। अल्लाह जानता है, पगड़ी वाले आधा ले लेंगे।

अमरकान्त न उसे धक्का देकर कहा--निकल जा यहां से सु‌अर, मुझे क्यों हैरान कर रहा है?

काले खां चला गया, तो अमर ने उस जगह को झाडू से साफ कराया और अगरबत्ती जलाकर रख दी। उसे अभी तक शराब की दुर्गध आ रही थी। आज उसे अपने पिता से जितनी अभक्ति हुई, उतनी कभी न हुई थी! उस घर की वायु तक लसे दूषित लगने लगी। पिता के हथकंडों से वह कुछ-कुछ परिचित तो था, पर उनका इतना पतन हो गया है, इसका प्रमाण आज ही मिला। उसने मन में निश्चय किया; आज पिता से इस विषय में खूब अच्छी तरह शास्त्रार्थ करेगा। उसने खड़े होकर अधीर नेत्रों से सड़क की ओर देखा। लालाजी का पता न था। उसके मन में आया, दूकान बंद करके चला जाए और जब पिताजी आ जाए तो साफ-साफ कह दे, मुझसे यह व्यापार न होगा। वह दुकान बंद करने ही जा रहा था कि एक बुढ़िया लाठी टेकती हुई आकर सामने खड़ी हो गई और बोली-- लाला नहीं हैं क्या, बेटा?

बुढ़िया के बाल सन हो गए थे। देह की हड्डियां तक सूख गई थीं। जीवन-यात्रा के उस