पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/२७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कर्मभूमि: 279
 

नैना ने दौड़कर अमर का हाथ पकड़ लिया और रोती हुई बोली-तुम कहां थे भैया, भाभी बड़ी देर से बेचैन हैं।

अमर के हृदय में आंसुओं की ऐसी लहर उठी कि वह रो पड़ा। सुखदा के कमरे के द्वार पर जाकर खड़ा हो गया; पर अंदर पांव न रख सका। उसका हृदय फटा जाता था।

सुखदा ने वेदना-भरी आंखों से उसकी ओर देखकर कहा-अब नहीं बचूंगी । हाय! पेट में जैसे कोई बर्छी चुभो रहा है। मेरा कहा-सुना माफ करना।

रेणुका ने दौड़कर अमरकान्त से कहा- तुम यहां से जाओ, भैया ! तुम्हें देखकर वह और भी बेचैन होगी। किसी को भेज दो, लेडी डॉक्टर को बुला लाए। जी कड़ा करो, समझदार होकर रोते हो?

सुखदा बोली- नहीं अम्मां, उनसे कह दो जरा यहां बैठ जाएं। मैं अब न बचूंगीं। हाय भगवान् ।

रेणुका ने अमर को डांटकर कहा--मैं तुमसे कहती हूं, यहां से चले जाओ, और तुम ख़ड़े रो रहे हो। जाकर लेडी डॉक्टर को बुलवाओ।

अमरकान्त रोता हुआ बाहर निकला और जनाने अस्पताल की ओर चला; पर रास्ते में भी रह-रहकर उसके कलेजे में हूक -सी उठती रही। सुखदा की वह वेदनामयी मूर्ति आंखों के सामने फिरती रही।

लेडी डॉक्टर मिस हुपर को अक्सर कुसमय बुलावे आते रहते थे। रात की उसकी फीस दुगुनी थी। अमरकान्त डर रहा था कि कहीं बिगड़े न कि इतनी रात गए क्यों आए, लेकिन मिस हूपर ने सहर्ष उसको स्वागत किया और मोटर लाने की आज्ञा देकर उससे बातें करने लगी।

"यह पहला ही बच्चा है?"

"जीं हां।"

"आप रोए नहीं। घबराने की कोई बात नहीं। पहली बार ज्यादा दर्द होता है। औरत बहुत दुर्बल तो नहीं है?

"आजकल तो बहुत दुबली हो गई है।"

"आपको और पहले आना चाहिए था।"

अमर के प्राण सूख गए। वह क्या जानता था, आज ही यह आफत आने वाली है, नहीं तो कचहरी से सीधे घर अतिी।

मेम साहब ने फिर कहा-आप लोग अपनी लेडियों को कोई एक्सरसाइज नहीं करवाते। इसलिए दर्द ज्यादा होता है। अंदर के स्नायु बंधे रह जाते हैं न।

अमरकान्त ने सिसककर कहा--मैडम, अब तो आप ही की दया का भरोसा है।

"मैं तो चलती हैं, लेकिन शायद सिविल सर्जन को बुलाना पड़े।"

अमर ने भयातुर होकर कहा-कहिए तो उनको लेता चलूं।

मेम ने उसकी ओर दयाभाव से देखा--नहीं, अभी नहीं। पहले मुझे चलकर देख लेन दो।

अमरकान्त को आश्वासन न हुआ। उसने भय-कातर स्वर में कहा-मैडम, अगर सुखदा को कुछ हो गया, तो मैं भी मर जाऊंगा।