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298:प्रेमचंद रचनावली-5
 


अमर ने ऊपरी दिल से कहा- अच्छा शेर है।
सलीम हतोत्साह न हुआ। दूसरा शेर पढा:

कुछ मेरी नजर ने उठ के कहा कुछ उनकी नजर ने झुक के कहा,
झगड़ा जो न बरसों में चुकता, तय हो गया बातों-बातों में।

अमर झूम उठा-खूब कहा है भई! वाह! वाह! लाओ कलम चूम लें। सलीम ने तीसरा शेर सुनाया:

यह यास का सन्नाटा तो ने थी, जब आस लगाए सुनते थे,
माना कि था घोखा ही पोखा, उन मीठी-मीठी बातों में।

अमर ने कलेजा थाम लिया--गजब का दर्द है भई! दिल मसोस उठा। एक क्षण के बाद सलीम ने छेड़ा-इधर एक महीने से सकीना ने कोई रूमाल नहीं भेजा क्या?

अमर ने गंभीर होकर कही–तुम तो यार, मजाक करते हो। उसकी शादी हो रही है। एक ही हफ्ता और है।

"तो तुम दुल्हिन की तरफ से बारात में जाना। मैं दूल्हे की तरफ से जाऊंगा।"

अमर ने आंखें निकलाकर कहा--मेरे जीते-जी यह शादी नहीं हो सकती। मैं तुमसे कहता हूं सलीम, मैं सकीना के दरवाजे पर जान दे दूंगा, सिर पटक-पटककर मर जाऊंगा।

सलीम ने घबराकर पूछा-यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, भाईजान? सकीना पर आशिक तो नहीं हो गए? क्या सचमुच मेरा गुमान सही था?

अमर ने आंखों में आंसू भरकर कहा-मैं कुछ नहीं कह सकता, मेरी क्यों ऐसी हालत हो रही है सलीम, पर जब से मैंने यह खबर सुनी है; मेरे जिगर में जैसे आरा-सा चल रहा है।

"आखिर तुम चाहते क्या हो? तुम उससे शादी तो नहीं कर सकते।"

"क्यों नहीं कर सकता?"

"बिल्कुल बच्चे न बन जाओ। जरी अक्ल से काम लो।"

“तुम्हारी यही तो मंशा है कि वह मुसलमान है, मैं हिन्दू हूं। मैं प्रेम के समने मजहब की हकीकत नहीं समझता, कुछ भी नहीं।"

सलीम ने अविश्वास के भाव से कहा- तुम्हारे खयालात तकरीरों में सुन चुका, अखबारों में पढ़ चुका हूं। ऐसे खयालात बहुत ऊंचे, बहुत पाकीजा, दुनिया में इंकलाब पैदा करने वाले हैं और कितनों ने ही इन्हें जाहिर करके नामवरी हासिल की है, लेकिन इल्मी बहस दूसरी चीज है, उस पर अमल करना दूसरी चीज है। बगावत पर इल्मी बहस कीजिए, लोग शौक से सुनेंगे। बगावत करने के लिए तलवार उठाइए और आप सारी सोसाइटी के दुश्मन हो जाएंगे। इल्मी बहस से किसी को चोट नहीं लगती। बगावत से गरदनें कटती हैं। मगर तुमने सकीना से भी पूछा, वह तुमसे शादी करने पर राजी है?

अमर कुछ झिझका। इस तरफ उसने ध्यान ही न दिया था। उसने शायद दिल में समझे लिया था, मेरे कहने की देर है, वह तो राजी ही है। उन शब्दों के बाद अब उसे कुछ पूछने की जरूरत न मालूम हुई।

"मुझे यकीन है कि वह राजी है।"