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30 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


नहीं। मैं चिड़िया नहीं हैं, जिसका पिंजड़ा दाना-पानी रखकर बंद कर दिया जाय। मैं भी आदमी हूं। अब इस घर में मैं क्षण-भर न रुकूंगी। अगर कोई मुझे भेजने न जायगा, तो अकेली चली जाऊंगी। राह में कोई भेड़िया नहीं बैठा है, जो मुझे उठा ले जाएगी और उठा भी ले जाए,तो क्या गम। यहां कौन-सा सुख भोग रही हूं।

रमा ने सावधान होकर कहा-आखिर कुछ मालूम भी तो हो, क्या बात हुई?

जालपा–बात कुछ नहीं हुई, अपनी जी है। यहां नहीं रहना चाहती।

रमानाथ-भला इस तरह जाओगी तो तुम्हारे घरवाले क्या कहेंगे, कुछ यह भी तो सोचो। जालपा–यह सब सोच चुकी हूं, और ज्यादा नहीं सोचना चाहती। मैं जाकर अपने कपड़े बांधती हूं और इसी गाड़ी से जाऊगी।

यह कहकर जालपा ऊपर चली गई। रमा भी पीछे-पीछे यह सोचता हुआ चला, इसे कैसे शांत करूं।

जालपा अपने कमरे में जाकर बिस्तर लपेटने लगी कि रमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला-तुम्हें मेरी कसम जो इस वक्त जाने का नाम लो।

जालपा ने त्योरी चढाकर कहा-तुम्हारी कसम की हमें कुछ परवा नहीं है।

उसने अपना हाथ छुड़ा लिया और फिर बिछावन लपेटने लगी। रमा खिसियाना-सा होकर एक किनारे खड़ा हो गया। जालपा ने बिस्तरबंद से बिस्तरे को बांधा और फिर अपने संदूक को साफ करने लगी। मगर अब उसमें वह पहले-सी तत्परता न थी, बार-बार संदूक बंद करती और खोलती। वर्षा बंद हो चुकी थी, केवल छत पर रुका हुआ पानी टपक रहा था। आखिर वह उसी बिस्तर के बंडल पर बैठ गई और बोली-तुमने मुझे कसम क्यों दिलाई।। रमा के हृदय में आशा की गुदगुदी हुई। बोला—इसके सिवा मेरे पास तुम्हें रोकने का और क्या साधन था?

जालपा-क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं घुट घुटकर मर जाऊँ? रमानाथ-तुम ऐसे मनहूस शब्द क्यों मुंह से निकालती हो? मैं तो चलने को तैयार हूं, न मानोगी तो पहुंचाना ही पड़ेगा। जाओ, मेरा ईश्वर मालिक हैं, मगर कम-से-कम बाबूजी और अम्मां से पूछ लो।

बुझती हुई आग में तेल पड़ गया। जालपा तड़पकर बोली-वह मेरे कौन होते हैं, जो उनसे पूछूं ? रमानाथ-कोई नहीं होते? जालपा-कोई नहीं । अगर कोई होते, तो मुझे यों न छोड़ देते। रुपये रखते हुए कोई अपने प्रियजनों का कष्ट नहीं देख सकता। ये लोग क्या मेरे आंसू न पोंछ सकते थे? मैं दिन-के दिन यहां पड़ी रहती हूं. कोई झूठों भी पूछता है? मुहल्ले की स्त्रियां मिलने आती हैं, कैसे मिलूं ? यह सूरत तो मुझसे नहीं दिखाई जाती। न कहीं आना न जाना, न किसी से बात न चीत, ऐसे कोई कै दिन रह सकता है? मुझे इन लोगों से अब कोई आशा नहीं रही। आख़िर दो लड़के और भी तो हैं, उनके लिए भी कुछ जोड़ेंगे कि तुम्हीं को दे दें।

रमा को बड़ी-बड़ी बातें करने का फिर अवसर मिला। वह खुश था कि इतने दिनों के