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कर्मभूमि: 325
 

हो, गया जिंदगी हजार-दो हजार साल की हैं। घर में रुपये भरे हुए हैं, बाप तुम्हारे ऊपर जान देता है, बीवी परी जैसी बैठी है, और आप एक जुलाहे की लड़की के पीछे घर-बार छोड़े भागे जा रहे हैं। मैं तो इसे पागलपन कहता हूं। ज्यादा-से-ज्यादा यही तो होगा कि तुम कुछ कर जाओगे, यहां पड़े सोते रहेंगे। पर अंजाम दोनों का एक है। तुम गमनाम सत्त हो जाओगे, मैं इनल्लाह राजेऊन।

अमर ने विषाद भरे स्वर में कहा—जिस तरह तुम्हारी जिंदगी गुजरी है, उस तरह मेरी जिंदगी भी गुजरती, तो शायद मेरे भी यही खयाल होते। मैं वह दरख्त हैं, जिसे कभी पानी नहीं मिला। जिंदगी की वह उम्र, जब इंसान को मुहब्बत की मबसे ज्यादा जरूरत होती है, बचपन है। उस वक्त पौधे को तरी मिल जाए तो जिंदगी भर के लिए उसकी जड़ें मजबूत हो जाती हैं। उस वक्त खुराक नही पाकर उसकी जिंदगी चुपक हो जाती है। मेरी माता का उमी जमाने में देहांत हुआ और तब से मेरी रूह की खुराक नहीं मिली। वहीं भख मेरी जिंदगी हैं। मुझे जहां मुहब्बत का एक रंजा भी मिलेगा, मैं बेअख्तियार उसी नरफ जाऊंगा। कुदरत का अट्रल कानुन मुझे उम्म तरफ ले जाती है। इसके लिए अगर मुझे कोई अतावरि कहे. नो कहें। मैं तो खुद ही को जिम्मेदार कहूंगा।

बातें करते-करते सनीम का मकान आ गया।

सलाम ने कहा- आओ, खाना तो खा लो। आखिर कितने दिनों तक जुलावतन रहने का इरादा है? दोनों आकर कमरे में बैठे। अमर ने जवाब दिया-यहां अपना कोन बैठा हुआ है, जिसे मेरा दर्द हो? बाप को मेरी परवाह नहीं, शायद और बुश हों कि अच्छा हुआ वला टली। सुखदा मेरी सूरत से बेजार हैं। दोस्तों में ले-दे के एक तुम होतुमसे कभी-कभी मुलाकात होती रहेगी। मां होती तो शायद उसकी मुहब्बत खींच लाती। तब जिंदगी की यह रफ्तार ही क्यों होती। दुनिया में सबसे बदनसीब वह है, जिसकी मां मर गई हो।

अमरकान्त मां की याद करके रो पड़ी। मां का वह स्मृति-चिन पके सामने आया, अब वह उसे रोते देखकर गोद में उठा लेती थीं, और माता के आंचल में सिर रखते ही वह निहाल हो जाता था।

सलीम ने अंदर जाकर चुपके से अपने नौकर को नाला समरकान्त के पास भेजा कि जाकर कहनी, अमरकान्त भागे जा रहे हैं। जल्दी चलिए। माथे लेकर फौरन आना। एक मिनट की देर हुई, तो गोली मार दूंगा।

फिर बाहर आकर उसने अमरकान्त को वातों में लगाया लेकिन तुमने यह भी सोचा हैं, मुखदादेवी का क्या हाल होगा? मान लो, वह भी अपनी दिलवस्तगी का कोई इंतजाम कर लें, बुरा न मानना।

अमर ने अनहोनी बात समझते हुए कहा--हिः औरत इतनी बेहया नहीं होती।

सलीम ने हंसकर कहा-बस, आ गया हिन्दुपन। अरे भाईजान, इस मामले में हिन्द और मुसलमान की कैद नहीं। अपनी-अपनी तबियत है। हिन्दुओं में भी देवियां हैं मुसलमानों में भी देवियां हैं। हरजाइयां भी दोनों ही में हैं। फिर तुम्हारी बीवी तो नई औरत है, पढ़ी लिखी, आजाद ख्याल, सैर-सपाटे करने वाली, सिनेमी देखने वाली, अखबार और नावल पढ़ने