पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/३२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
326:प्रेमचंद रचनावली-5
 


ऐसी औरतों से खुदा की पनाह। यह यूरोप की बरकत है। आजकल की देवियां जो कुछ न कर गुजरें वह थोड़ा है। पहले लौंडे पेशकदमी किया करते थे। मरदों की तरफ से छेड़छाड़ होती थी, अब जमाना पलट गया है। अब स्त्रियों की तरफ से छेड़छाड़ शुरू होती है!

अमरकान्त बेशर्मी से बोला-इसकी चिंता उसे हो जिसे जीवन में कुछ सुख हो। जो जिंदगी से बेजार है, उसके लिए क्या? जिसकी खुशी हो रहे, जिसकी ख़ुशी हो जाए। मैं ने किसी का गुलाम हूं, ने किसी को गुलाम बनाना चाहता हूँ।

सलीम ने परास्त होकर कहा--तो फिर हद हो गई। फिर क्यों न औरतों का मिजाज आसमान पर चढ़ जाए। मेरा खून तो इस खयाल ही में उबल आता है।

"औरतों को भी तो बेवफा मरदों पर इतना ही क्रोध आता हैं।"

"औरतों-मरदों के मिजाज में, जिस्म को बनावट में, दिन के जज्बात में फर्क है। औरत एक ही की होकर रहने के लिए बनाई गई है। मरद आजाद् रहने के लिए बनाया है।"

"यह मरदों की खुदगरजी है।"

“जी नहीं, यह हैवानी जिंदगी का उसूल है।"

बहस में शाखें निकलती गई। विवाह का प्रश्न आया, फिर बेकारी की समस्या पर विचार होने लगा। फिर भोजन आ गया। दोनों खाने लगे।

अभी दो-चार कौर ही खाए होंगे कि दरबान ने लाला समकान्त के आने की खबर दी। अमरकान्त झट मेज पर से उठ खड़ा हुआ, कुल्ला किया, अपने प्लेट मेज के नीचे छिपाका रख दिए और बोला-इन्हें कैंस मेरी खबर मिल गई: अभी तो इतनी देर भी नहीं हुई। जरूर बुढिया ने आग लगा दी।

सलीम मुस्करा रहा था।

अमर ने त्यौरियां चढ़ाकर कहा-यह तुम्हारी शरारत मालूम होती है। इसीलिए तुम मुझे यहां लाए थे? आखिर क्या नतीजा होगा? मुफ्त की जिल्लने होगी मेरी। मुझे जलील करने में तुम्हें कुछ मिल जाएगा? मैं इसे दोस्ती नहीं, दुश्मनी कहता हूं।

ताया द्वार पर रुका और लाला समरकान्त ने कमरे में कदम रखा।

सलाम इस तरह लालाजी की ओर देख रहा था, जैसे पूछ रहा हो, मैं यहां रहूं या जाऊ लालाजी ने उसके मन का भाव ताड़कर कहा-तुम क्यों वई हो चटा, बैठ जाओ। हमारी और हाफिजजी की पुरानी दोस्ती है। उमी तरह तुम और अमर भाई - भाई हो। तुमसे क्या परदा हैं? मैं सब सुन चुका हूं लन्नृ बुढ़िया रोती हुई आई थी। मैने बुरी तरह फटकारा। मैंने कह दिया, मुझे तेरी बात का विश्वास नहीं हैं। जिसकी स्त्री लक्ष्मी का रूप हो, वह क्यों चुडैलों के पछि प्राण देता फिरंग, लेकिन अगर कोई बात ही है, तो उसमें घबराने की कोई बात नहीं, वे भृत्ल-चूक सभी में होती है। बुढ़ियों को दो-चार सौ रुपये दे दिए जाएंगे। लड़की की किमी भर ले घर में शादी हो जाएगी। चलो झगड़ा पाक हुआ। तुम्हें घर से भागने और शहर में ढिंढोरा पीटने की क्या जरूरत है? मेरी परवाह मत करो; लेकिन तुम्हें ईश्वर ने बाल-बच्चे दिए हैं। सोचो, तुम्हारे चले जाने में कितने प्राणी अनाथ हो जाएंगे? स्त्री तो स्त्री ही है, बहन है वह रो-रोकर मर जाएगी। रेणुकादेवी हैं, वह भी तुम्हीं लोगों के प्रेम से यहां पड़ी हुई हैं। जब तुम्हीं