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कर्मभूमि: 327
 


न होगे, तो वह सुखदा को लेकर चली जाएंगी, मेरा घर चौपट हो जाएगा। मै घर में अकेला भूत की तरह पड़ा रहूंगा। बेटा सलीम, मैं कुछ बेजा तो नहीं कह रहा हूं? जो कुछ हो गया, सो हो गयी। आगे के लिए एहतियात रखो। तुम खुद समझदार हो, मैं तुम्हें क्या समझाऊँ? मन को कर्तव्य की डोरी से बांधना पड़ता हैं, नहीं तो उसकी चंचलता आदमी को न जाने कहां लिए-लिए फिरे? तुम्हें भगवान् ने सब कुछ दिया है। कुछ घर का काम देखो, कुछ बाहर का काम देखो। चार दिन की जिंदगी है, इसे हंस- खेलकर काट देना चाहिए। मारे-मारे फिरने से क्या फायदा?

अमर इस तरह बैठा रहा, मानो कोई पागल बक रहा है। आज तुम यहां चिकनी-चुपड़ी बातें कहके मुझे फंसाना चाहते हो। मेरी जिंदगी तुम्ही ने खराब की। तुम्हारे ही कारण मेरी यह दशा हुई। तुमने मुझे कभी अपने घर को घर न समझने दिया। तुम मुझे चक्की का बैल बनाना चाहते हो। वह अपने बाप का अदव उतना न करता था, जितना दवता था, फिर भी उसकी कई बार बीच में टोकने की इच्छा हुई। ज्योंही लालाजी चुप हए, उसने दुहता के साथ कहा- दादा, आपके घर में मेरा इतना जीवन नष्ट हो गया, अब में उसे और नष्ट नहीं करना चाहता। आदमी का जीवन खाने और मर जाने के लिए नहीं होता, न धन-संचय उसका उद्देश्य है। जिस दशा में मैं, वह मेरे लिए असहनीय हो गई हैं। मैं एक नए जीवन का सूत्रपात करने जा रहा हूं, जहां मजदूरी लज्जा की वस्तु नहीं, जहां स्त्री पति को केवल नीचे नदी धम्पीटती, उम्प पतन की ओर नहीं ले जाती, बल्कि उसके जीवन में आनंद और प्रकाश का संचार करती है। रूढ़ियों और मर्यादाओं का दाम बनकर नहीं रहना चाहता। आपके घर में मुझे नित्य बाधाओं का सामना करना पड़ेगा और उसी सघर्ष म मेरा विन समाप्त हो जाएगा। आप ठंडे दिन में कह सकते हैं आपके घर में सकीना के लिए स्थान है?

लालाजी ने भीत नेत्रों में देखकर पछा--किस रूप में?

"मेरी पत्नी के रूप में।"

"नहीं, एक बार नहीं, सौ बार नही।"

"तो फिर मेरे लिए भी आपके घर में स्थान नहीं हैं।"

"और तो तुम्हें कुछ नही कहना है?"

"जी नहीं।"

लालाजी कुर्सी से उठकर द्वार की ओर बढे। फिर पलटकर बोले—बता सकते हो, कहां जा रहे हो?

"अभी तो कुछ ठीक नहीं हैं।"

"जाओ, ईश्वर तुम्हें मुखो रखे। अगर कभी किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझे लिखने में संकोच न करना।"

"मुझे आशा है, मैं आपको कोई कष्ट न दूंगा।"

लालाजी ने सजल नेत्र होकर कहा-चलते-चलते घाव पर नमक न छिड़को, लल्लू। बाप का हदय नहीं मानता। कम-से-कम इतना तो करना कि कभी-कभी पत्र लिखते रहना। तुम मेरा मुंह न देखना चाहो, लेकिन मुझे कभी-कभी आने-जाने से न रोकना। जहां रहो, सुखी रहो, यही मेरा आशीर्वाद है।