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कर्मभूमि: 335
 


तजबीज पेश की-खेती-बारी की इच्छा हो तो कर लो। सलोनी भाभी के खेत हैं। तब तक वही जोतो।

पयाग ने सूआ चलाते हुए कहा-खेती की झंझट में न पड़ना, भैया! चाहे खेत में कुछ हो या न हो, लगान जरूर दो। कभी ओला-पाला, कभी सूखा-बूड़ा। एक-न-एक बला सिर पर सवार रहती है। उस पर कहीं बैल मर गया या खलिहान में आग लग गई तो सब कुछ स्वाहा। घास सबसे अच्छी। न किसी के नौकर न चाकर, न किसी का लेना न देना। सबेरे खुरपी उठाई और दोपहर तक लौट आए।

काशी बोला–मजूरी, मजूरी है, किसानी, किसानी है, मजूर लाख हो, तो मजूर कहलाएगा। सिर पर घास लिए चले आ रहे हैं। कोई इधर से पुकारता है-ओ घास वाले। कोई उधर से। किसी की मेंड़ पर घास कर लो, तो गालियां मिलें। किसानों में मरजाद है।

पयाग का सूआ चलना बंद हो गया-मरजाद ले के चाटो। इधर-उधर से कमा के लाओ, वह भी खेती में झोंक दो।

चौधरी ने फैसला किया-घाटा-नफा तो हर एक रोजगार में , भैया! बड़े-बड़े सेठों का दिवाला निकल जाता है। खेती बरोबर कोई रोजगार नहीं जो कमाई और तकदीर अच्छी हो। तुम्हारे यहां भी नजर-नजराने का यही हाल है, भैया?

अभर आला--हां, दादा सभी जगह यही हाल है, कहीं ज्यादा कहीं कम। सभी गरीबों का लहू चूसते हैं।

चौधरी ने स्नेह का सहारा लिया-भगवान् ने छोटे-बड़े का भेद क्यों लगा दिया, इसका मरम समझ में नहीं आता? उनके तो सभी लड़के हैं। फिर सबको एक आंख से क्यों नहीं देखते?

पयाग ने शंका-समाधान की पूरब जनम का संसकार है। जिसने जैसे करम किए, वैसे फल पा रहा है।

चौधरी ने खंडन किया-यह सब मन को समझाने की बातें हैं बेटा, जिसमें गरीबों को अपनी दसा पर संतोष रहे और अमीरों के राग-रंग में किसी तरह की बाधा पड़े। लोग समझते रहें कि भगवान ने हमको गरीब बना दिया, आदमी का क्या दोस: पर यह कोई न्याय नहीं है कि हमारे बाल-बच्चे तक काम में लगे रहें और पेट भर भोजन न मिले और एक-एक अफसर को दस-दस हजार की तलब मिले। दस तोडे रुपये हुए। गधे से भी न उठे।

अमर ने मुस्कराकर कहा-तुम तो दादो नास्तिक हो।

चौधरी ने दीनता से कहा-बेटा, चाहे नास्तिक कहो, चाहे भूरख हो, पर दिल पर चोट लगती है, तो मुंह से आह निकलती ही है। तुम तो पढ़े-लिखे हो जी?

"हां, कुछ पढ़ा तो है।"

"अंगरेजी तो न पढ़ी होगी?"

"नहीं, कुछ अंग्रेजी भी पढ़ी है।"

चौधरी प्रसन्न होकर बोले-तब तो भैया, हम तुम्हें न जाने देंगे। बाल-बच्चों को बुला लो और यहीं रहो। हमारे बाल-बच्चे भी कुछ पढ़ जाएंगे। फिर सहर भेज देंगे। वहां जात-पांत-बिरादरी कौन पूछता है। लिखा दिया हम छतरी हैं।