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कर्मभूमि:349
 

थे। गंभीर भाव से बोले--भाइयो, यहां गांव के सब आदमी जमा हैं। बताओ, अब क्या सलाह है?

एक चौड़ी छाती वाला युवक बोला--सलाह जो तुम्हारी है, वही सबकी है। चौधरी तो तुम हो।

पयाग ने अपने बाप को विचलित होते देख, दूसरों को ललकारकर कहा--खड़े मुंह क्या ताकते हो, इतने जने तो हो। क्यों नहीं मुन्नी का हाथ पकड़कर हटा देते? मैं गंडासा लिए खड़ा हूँ।

मुन्नी ने क्रोध से कहा--मेरा ही मांस खा जाओगे, तो कौन हर्ज है? वह भी तो मांस ही है।

और किसी को आगे बढ़ते न देखकर पयाग ने खुद आगे बढ़कर मुन्नी का हाथ पकड़ लिया और उसे वहां से घसीटना चाहता था कि काशी ने उसे जोर से धक्का दिया और लाल आंखें करके बोला--भैया, अगर उसकी देह पर हाथ रखा, तो खून हो जाएगा-–कहे देता हूँ। हमारे घर में इस गऊ मांस की गंध तक न जाने पाएगी। आए वहां से बड़े वीर बनकर।

चौड़ी छाती वाला युवक मध्यस्थ बनकर बोला--मरी गाय के मांस में ऐसा कौन-सा मजा रखा है, जिसके लिए सबै जने मरे जा रहे हो। गड्ढा खोदकर मांस गाड़ दो, खाल निकाल लो। वह भी जब अमर भैया की सलाह हो तो। सारी दुनिया हमें इसीलिए तो अछूत समझती है कि हम दारू-सराब पीते हैं, मुरदा मांस खाते हैं और चमड़े का काम करते हैं। और हममें क्या बुराई है? दारू-सब हमने छोड़ दी है? रहा चमड़े का काम, उसे कोई बुरा नहीं कहे। सकता, और अगर कहे भी तो हमें उसकी परवाह नहीं। चमड़ा बनाना-बेचना कोई बुरा काम नहीं है।

गूदड़ ने युवक की ओर आदर की दृष्टि से देखा--तुम लोगों ने भूरे की बात सुन ली। तो यही सबकी सलाह है?

भूरे बोला--अगर किसी को उजर करना हो तो करे।

एक बूढ़े ने कहा--एक तुम्हारे या हमारे छोड़ देने से क्या होता है?नारी बिरादरी तो खाती है।

भूरे ने जवाब दिया--बिरादरी खाती है, बिरादरी नीच बनी रहे। अपना-अपना धरम अपने-अपने साथ है।

गूदड़ ने भूरे को संबोधित किया--तुम ठीक कहते हो, भूरे! लड़कों को पढ़ना ही ले लो। पहले कोई भेजता यो अपने लड़कों को? मगर जब हमारे लड़के पढ़ने लगे, तो दूसरे गांवों के लड़के भी आ गए।

काशी बोला--मुरदा मांस न खाने के अपराध का दंड बिरादरी हम न देगी। इसका मैं जुम्मा लेता हूं। देख लेना; आज की बात सांझ तक चारो ओर फैल जाएगी, और यह लोग भी यही करेंगे। अमर भैया का कितना मान है। किसको मजाल है कि उनकी बात को काट दे।

पयाग ने देखा, अब दाले न गलेगी, तो सबको धिक्कारकर बोला--अब मेहरियों को राज है, मेहरियां जो कुछ न करें वह थोड़ा।

यह कहता हुआ वह गंडासा लिए घर चला गया।