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36 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


विवाह के लिए घेरा भी; लेकिन कभी इच्छा ही न हुई। उस प्रेम की मधुर स्मृतियों में मेरे प्रेम का सजीव आनंद भरा हुआ है। यों बातें करते हुए, दोनों आदमी दफ्तर पहुंच गए।

दस

दफ्तर से घर पहुंचा,तो चार बज रहे थे। वह दफ्तर ही में था कि आसमान पर बादल घिर आए। पानी आया ही चाहता था; पर रमा को घर पहुंचने की इतनी बेचैनी हो रही थी कि उससे रुका न गया। हाते के बाहर भी न निकलने पाया था कि जोर की वर्षा होने लगी। आषाढ़ का पहला पानी था, एक ही क्षण में वह लथपथ हो गया। फिर भी वह कहीं रुका नहीं। नौकरी मिल जाने का शुभ समाचार सुनाने का आनंद इस दौंगड़े की क्या परवाह कर सकता था? वेतन तो केवल तीस ही रुपये थे, पर जगह आमदनी की थी। उसने मन-ही-मन हिसाब लगा लिया था। कि कितना मासिक बचत हो जाने से वह जालपा के लिए चन्द्रहार बनवा सकेगा। अगर पचास-साठ रुपये महीने भी बच जाये, तो पांच साल में जालपा गहनों से लद जाएगी। कौन-सा आभूषण कितने का होगा, इसका भी उसने अनुमान कर लिया था। घर पहुंचकर उसने कपड़े भी न उतारे, लथपथ जालपा के कमरे में पहुंच गया।

जालपा उसे देखते ही बोली-यह भीग कहां गए, रात कहां गायब थे?

रमानाथ-इसी नौकरी की फिक्र में पड़ा हुआ हूं। इस वक्त दफ्तर से चला आती हूँ।

म्युनिसिपैलिटी के दफ्तर में मुझे एक जगह मिल गई।

जालपा ने उछलकर पूछा-सच। कितने की जगह है?

रमा को ठीक-ठीक बतलाने में संकोच हुआ। तीस की नौकरी बताना अपमान की बात थी। स्त्री के नेत्रों में तुच्छ बनना कौन चाहता है। बोला-अभी तो चालीस मिलेंगे, पर जल्दतरक्की होगी। जगह आमदनी की है।

जालपा ने उसके लिए किसी बड़े पद की कल्पना कर रक्खी थी। बोली-चालीस में क्या होगा? भला साठ-सत्तर तो होते!

रमानाथ-मिल तो सकती थी सौ रुपये की भी, पर यहां रौब है, और आराम है। पचास-साठ रुपये उपर से मिल जाएंगे।

जालपा–तो तुम घूस लोगे, गरीबों का गला काटोगे?

रमा ने हंसकर कहा-नहीं प्रिये, वह जगह ऐसी नहीं कि गरीबों का गला काटना पड़े।

बड़े-बड़े महाजनों से रकमें मिलेंगी और वह खुशी से गले लगावेंगे। मैं जिसे चाहूं दिनभर दफ्तर में खड़ा रक्खू। महाजनों का एक-एक मिनट एक-एक अशरफी के बराबर है। जल्द-से-जल्द अपना काम कराने के लिए वे खुशमद भी करेंगे, पैसे भी देंगे।

जालपा संतुष्ट हो गई, बोली-हां, तब ठीक है। गरीबों का काम यों ही कर देना।

रमानाथ-वह तो करूंगा ही।

जालपा-अभी अम्मांजी से तो नहीं कहा? जाकर कह आओ। मुझे तो सबसे बड़ी खुशी