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कर्मभूमि: 369
 

व्यास के छोटे भाई से लग रहे थे। यहां उनका वह फैशन न था, जिस पर विधर्मी होने का आक्षेप किया जा सकता था।

डॉक्टर साहब ने फिर ललकार कहा—आप लोगों ने हाथ यों बंद कर लिए? लगाइए कस-कसकर! और जूतों से क्या होता है? बंदूकें मंगाइए और धर्म-द्रोहियों का अंत कर डालिए। सरकार कुछ नहीं कर सकती। और तुम धर्म-द्रोहियो, तुम सब-के-सब बैठ जाओ और जितने जूते खा सको, खाओ। तुम्हें इतनी खबर नहीं कि यहां सेठ महाजनों के भगवान होते हैं। तुम्हारी इतनी मज़ाल कि इनके भगवान् के मंदिर में कदम रखो! तुम्हारे भगवान् कि सी झोंपड़े में या पेड़ तले होंगे। यह भगवान् रत्नों के आभूषण पहनते हैं। मोहनभोग-मलाई खाते हैं। चीथड़े पहनने वालों और चबैना खाने वालों की सूरत वह नहीं देखना चाहते।

ब्रह्मचारीजी परशुराम की भांति विकराल रूप दिखाकर बोले—तुम तो बाबूजी, अंधेर करते हो। सामतर में कहां लिखा है कि अत्यज को मंदिर में आने दिया जाए?

शान्तिकुमार ने आवेश से कहा—कहीं नहीं। शाम्त्र में यह लिखा है कि घी में चर्बी मिलाकर बेचो, टेनी मारो, रिश्वतें खाओ। आंखों में धूल झोंको और जो तुरसे बलवान हैं, उनके चरण धो-धोकर पीयो, चाहे वह शास्त्र को पैरों से टकराते हो। तुम्हारे शास्त्र में यह लिखा है, तो यह करो। हमारे शास्त्र में तो यह लिखा है कि भगवान् की दृष्टि में न कोई छोटा है न बड़ा, न कोई शुद्ध और न कोई अशुद्ध। उसकी गुदि सबके लिए खुनी हुई है।

समरकान्त ने कई आदमियों को अंत्यजों का पक्ष लेने के लिए तैयार देखकर उन्हें शांत करने की चेष्य करते हुए कहा-डॉक्टर साहब, तुम व्यर्थ इतना क्रोध कर रहे हो। शास्त्र में क्या लिखा है, क्या नहीं लिखा है, यह तो पंडित ही जानते हैं। हम तो जैसी प्रथा देखते हैं, वह करते हैं। इन पाजियां को सोचना चाहिए था या नहीं? इन्हे ना यहां का हाल मालूम है, कहीं ज्ञाहर से तो नहीं आए हैं।

शान्तिकुमार का खून खौल रहा था—आप लोगो ने जूते क्यों मारे?

ब्रह्मचारी ने उजड्डपन से कहा—और क्या पान-फल लेकर पूजा?

शान्तिकुमार उत्तेजित होकर बोले—अंधे भक्तों को आंखों में धूल झोककर यह हलवे बहुत दिन ख़ाने को न मिलेंगे महाराज, समझ गए? अब वह समय आ रहा है, जब भगवान् भी पानी से स्नान करेंगे, दूध से नहीं।

सब लोग हां-हां करते ही रहे, पर शान्ति कुमार, आत्मानन्द और सेवा-पाठशाला के छात्र उठकर चल दिए। भजन-मंडली का मुखिया सेवाश्रम का ब्रजनाथ था। वह भी उनके साथ ही चला गया।

चार

उस दिन फिर कथा न हुई। कुछ लोगों ने ब्रह्मचारी ही पर आक्षेप करना शुरू किया। बैठे तो थे बेचारे एक कोने में, उन्हें उठाने की जरूरत ही क्या थी? और उठाया भी, तो नम्रता से उठाते। मार-पीट से क्या फायदा?