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कर्मभूमि: 383
 

सुखदा उसी आवेश में बोली-कहते हैं, आदमी की पहचान उसकी संगत से होती है। जिसकी संगत आप, मुहम्मद सलीम और स्वामी आत्मानन्द जैसे महानुभावों की हो, वह अपने धर्म को इतना भूल जाये यह बात मेरी समझ में नहीं आती। मैं यह नहीं कहती कि में निर्दोष हूं। कोई स्त्री यह दावा नहीं कर सकती, और न कोई पुरुष ही यह दावा कर सकता है। मैंने सकीना से मुलाकात की है। संभव है उसमें वह गुण हो, जो मुझमें नहीं है। वह ज्यादा मधुर है, उसके स्वभाव में कोमलता है। हो सकता है, वह प्रेम भी अधिक कर मकती हो, लेकिन यदि इसी तरह सभी पुरुष और स्त्रियां तुलना करके बैठ जायं, तो संसार की क्या गति होगी? फिर तो यहां रक्त और आंसुओं की नदियों के सिवा और कुछ न दिखाई देगा।

शान्तिकुमार ने परास्त होकर कहा-मैं अपनी गलती को मानता हूं, सुखदादेवी । मैं तुम्हें न जानता था और इस भय में था कि तुम्हारी ज्यादती है। मैं आज ही अगर को पत्र

सुखदा ने फिर बात काटी-नहीं, मैं आपसे यह प्रेरणा करने नहीं आई हूँ, और न यह चाहती हूं कि आप उनसे मेरी ओर से दया की भिक्षा मांगे। यदि वह मयसे दूर भागना चाहते हैं, तो मैं भी उनको बांधकर नहीं रखना चाहती। पुरुष को जो आजादी मिली है, वह उसे मुबारक रहे, वह अपना तन-मने गन्नी- गली बचता फिरे। मैं अपने बंधन में प्रसन्न हूं। और ईश्वर से यह विनता करती हूं कि वह इस बंधन में मुझे डाले रखे। मैं जलन या ईष्र्या से विचलित हो जाऊं, उस दिन के पहले वह मेरा अंत कर दे। मुझे आपसे मिलकर ज जो तृप्ति हुई, उसका प्रमाण यही हैं कि मैं आपस वह बात कह गई, जो मैंने कभी अपनी माता में भी नहीं कहीं। बीबी आपका बखान करती थी उससे ज्यादा सज्जनता आपमें पाई, मगर आपको मैं अकेला न रहने देंगी। ईश्वर वह दिन लाए कि मैं इस घर में भाभी के दर्शन करू।

जब दोनों रमणियां यहां से चलीं, तो डॉक्टर साहब लाठी टेकते हुए फाटक तक उन्हें पहुंचाने आए और फिर कमरे में आकर लेटे, तो ऐसा जान पड़ा कि उनका यौवन जाग उठा है। मुखदा के वेदना से भरे हुए शब्द उनके कानों में गुंज रहे थे और ना मुन्ने को गोद में लिए जैसे उनके सम्मुख खड़ी थी।

सात

उसी रात को शान्तिकुमार ने अमर के नाम खत लिखा। वह उन आदमियों में थे जिन्हे और सभी कामों के लिए समय मिलता है, खत लिखने के लिए नहीं मिलता। जितनी अधिक घनिष्ठता, उतनी ही बेफिक्री। उनकी मैत्री खतों से कहीं गहरी होती है। शान्तिकुमार को अमर के विषय में सलीम से सारी बातें मालूम होती रहती थीं। खत लिखने की क्या रूरत थी? सकीना से उसे प्रेम हुआ इसकी जिम्मेदारी उन्होंने सुखदा पर रखी थी, पर आज सुखदा से मिलकर उन्होंने चित्र का दूसरा रुख भी देखा, और सुखदा को उस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया। खत जो लिखा, वह इतना लंबा-चौड़ा कि एक ही पत्र में साल भर की कसर निकल गई। अमरकान्त के जाने के बाद शहर में जो कुछ हुआ, उसकी पूरी-पूरी कैफियत बयान की,