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कर्मभूमि: 393
 

मजदूरी में बड़ी किफायत होगी। राज, बेलदार, बढई, लोहार आधी मजूरी पर काम करने को तैयार हैं। ठेके वाले, गधे वाले, गाड़ी वाले, यहां तक कि इक्के और तांगे वाले भी बेगार काम करने पर राजी हैं।"

"देखिए, शायद चल जाए। दो-तीन लाख घायद दादाजी लगा दें, अम्मां के पास भी अभी कुछ-न-कुछ होगा ही, बाकी रुपये की फिक्र करते हैं। सबसे बड़ी जमीन की मुश्किल है।"

"मुश्किल क्या है? दस बंगले गिरा दिए जाएं तो जमीन-ही-जमीन निकल आएगी।"

“बंगलों का गिराना आप आसान ममझने हैं।"

"आसान तो नहीं समझता, लेकिन उपाय क्या है? शहर के बाहर तो कोई रहेगा नहीं। इसलिए शहर के अंदर ही जमीन निकालनी पड़ेगी। बाजे मकान इतने लंबे-चौड़े हैं कि उनमें एक हजार आदमी फैलकर रह सकते हैं। आप ही का मकान क्या छोटा है? इसमें दस गरीब परिवार बड़े मजे में रह सकते हैं।"

सुखदा मुस्काई-आप तो हम लोगों पर ही हाथ साफ करना चाहते हैं ।

"जो राह बताए उसे आगे चलना पड़ेगा।"

"मैं तैयार हैं, लेकिन म्यूनिसिपैलिटो के पास कुछ प्लाट ती खाली होंगे?"

"हां, हैं क्यों नहीं? मैंने उन सबों का पता लगा लिया है. मगर हाफिजजी फरमाते हैं। उन प्लाटों की बातचीत तय हो चुकी हैं।"

सलीम ने मोटर से उतरकर शान्तिकुमार को पुकारा। उन्होंने उसे अंदर बुला लिया और पृछा--किधर से आ रहे हो?

सलीम ने प्रसन्न मुखं से कहा-कल रात को चला जाऊंगा। सोचा, आपसे रुखसत होता चले। इसी बहाने देवीजी से भी नियाज हामिल हो गया।

शान्तिकुमार ने पूछा-अरे तो यों ही चले जाओगे, भाई’ कोई जलसा, दावत, कुछ नहीं? वाह ।

"जलम्मा तो कल शाम को हैं। कार्ड तो आपके यहां भेज दिया था, अगर आपसे तो जलसे की मुलाकात काफी नहीं।"

"तो चलते-चलने हमारी थोड़ी सी मदद करो । दक्षिण तरफ म्युनिसिपैलिटी के जो फ्नाट हैं, वह हमें दिला दो मुफ्त में। "

सलीम का मुख गंभीर हो गया। बोला-उन प्नाटो की तो शायद बातचीत हो चुकी है। कई मेंम्बर खुद बेटों और बीवियों के नाम रखरीदने को मुंह खोले बैठे हैं।

सुखदा विस्मित हो गई-अच्छा भीतर ही भीतर यह कपट-लीला भी होती हैं। तब तो आपकी मदद की और जरूरत है। इस मायाजाल को तोड़ना का कर्तव्य है।

सलीम ने आंखें चुराकर कहा-अब्बाजान इस मुआमले में मेरी एक न सुनें, और हक यह है कि जो मुआमला तय हो चुका, उसके बारे में कुछ जोर देना भी तो मुनासिब नहीं।

यह कहते हुए उसने सुखदा और शान्तिकुमार से हाथ मिलाया और दोनों से कल शाम के जलसे में आने का आग्रह करके चला गया। वहा बैठने में अब उसकी खैरियत न थी।

शान्तिकुमार ने कहा- देखा आपने । अभी जगह पर गए नहीं, पर मिजाज में अफसरों