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396:प्रेमचंद रचनावली-5
 

नौ

सुखदा सड़क पर मोटर से उतरकर सकीना का घर खोजने लगी, पर इधर से उधर तक तीन चक्कर लगा आई, कही वह घर न मिला। जहां वह मकान होना चाहिए था, वहां न एक नया कमरा थी, जिस पर कलई पुती हुई थी। वह कच्ची दीवार और सड़ा हुआ टाट । परदा कहीं न था। आखिर उसने एक आदमी से पूछा, तब मालूम हुआ कि जिसे वह नया कमरा समझ रही थी, सकीना के मकान का दरवाजा है। उसने अवाज दी और एक क्षण में द्वार खुल गया। सुखदा ने देखा, वह एक साफ सुथरा छोटा-सा कमरा है, जिसमें दो-तीन मा रखे हुए हैं। सकीना ने एक मोढ़ को बढ़ाकर पूछा-आपको मकान तलाश करना पड़ा होगा। यह नया कमरा बन जाने से पता नहीं चलता।

सुखदा ने उसके पीले, सूखे मुंह की ओर देखते हुए कहा-हा, मैंने दो- तीन चक्क लगाए। अब यह घर कहलाने लायक हो गया, मगर तुम्हारी यह क्या हालत हैं? बिल्क। पहचान ही नहीं जाती।

सकीना ने हमने की चेष्टा करके कहा-मैं तो मोटी -ताजी कभी न थी।

"इस वक्त नो पहले से भी उतरी हुई हो।"

महसा पठानिन आ गई और यह प्रश्न सुनकर बोली--महीनों से बुखार आ रहा है । लकिन दवा नहीं खाती। कौन कहे, मुझसे बोलचाल बंद हैं। अल्लाह जानता है. तुम्हाग व याद आती थी बहूजी, पर आऊ कौन मुंह लेकर अभी थोड़ी ही देर हुई, लाला जी भी : हैं। जुग जुग जिएं। सकीना ने मना कर दिया था, इसलिए तलब लेने न गई थी। वही दने । थे। दुनिया में ऐसे-ऐसे कुदा के वंदे पड़े हुए हैं। दृमरा होता, तो मेरी मूरत न दे।। उन बम्पा-बसाया घर मुझ नबिजिन्नी के कारण उजड़ गया। मगर नाला का दिन वही हैं, व खयाल है, वही परवरिश की निगाह है। मेरी आंखों पर न जाने क्यों परदा पड़ गया था कि मैंने भोले-भाले लड़के पर वह इल्जाम लगा दिया। बुदा करे, मुझे भरने के बाद कफन हो न नसीब हो । मैंने इतने दिनों बड़ी छानबीन की बेटी ! सभी ने मेरी लानत मामले की ? लड़की ने तो मुझमें बोलना छोड़ दिया। खट्टी ता है, पूछा। एमी -एसी बातें कहती है कि कमाने में चुभ जाती हैं। खुदा मुनवाता है, तभी तो सुनती है। वैसा काम न किया होता तो क्या - पडता? उस अंधरे घर में इसके साथ देवकर मुझे शुबहा हो गया और जब उस गरीव न ? कि वैचारी औरत बदनाम हो रही है, तो उसका खातिर अपना धरम दन को भी राजी हो गया। मुझ निगाड़ी को उम गुम्मे में यह खयान्न भो न रहा कि अपने ही मुंह तो कालिख लगा रहा हूँ।

सकीना ने तीव्र कट से कहा-अरे, हो तो चुका, अब कब तक दुखड़ा रोए जा अगा। कुछ और बातचीत करने दोगी या नहीं?

पठानिन ने फरियाद कोइभी तरह मुझे झिड़कती रहती है बेटी, बालन नहीं देती। पूछो, तुमसे दुग्ड़ा ने राऊं, तो किसक पाम रोन जाऊ?

मुख़दा ने सकीना से पूछा- अच्छा, नुमने अपना वमीका न्नने में क्या इंकार कर दिया था? वह तो बहुत पहले से मिल रहा है।