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कर्मभूमि: 397
 

सकीना कुछ बोलना ही चाहती थी कि पठानिन फिर बोली-इसके पीछे मुझसे लड़ा करती है, बहु । कहती है, क्यों किसी की खैरात लें? यह नहीं सोचती कि उसी से तो हमारी रवरिश हुई है। बस, आजकल सिलाई की धुन है। बारह-बारह बजे रात तक बैठी आंखें फोटती रहती है। जरा सूरत टेस्रो, इसी से बुखार भी आने लगा है, पर दवा के नाम से भागती है। कहती हैं, जान रखकर काम कर, कोन लाव-लश्कर खाने वाला है, लेकिन यहां नो धन है, घर भी अच्छा हो जाए, सामान भी अच्छा बन जाए। इधर काम अच्छा मिली हैं, और मजूरी भी अच्छी मिल रही है, मगर सब इम्पो टीम-दाम में उड़ जाती है। यहां से थोड़ा दर पर एक ईसाइन रहती है, वह जि सुबह पढ़ाने आती है। हमारे जमाने में तो बेटा मिपारा और रोजा-नमाज का रिवाज था। कई जगह स शादी के पैगाम आए।

सकीना ने कठोर हाकर कहा–अरे, तो अब चुप भी रहा। हो तो चुका आपकी या खातिर करू बहने? आपने इतने दिनों बाद मुझे बदनसीब को याद तो किया।

सुबुदा ने उदार मन से कहा- याद तो तुम्हारी बराबर आती रहती थी और आने का जो भी चाहता था, पर इरती थी, तुम अपने दिल में न जाने क्या समझो? यह तो आज मियां सलीम से मालूम हुआ कि तुम्हारी तबीयत अच्छी नहीं है। जब हम लोग तुम्हारी खिदमत करने को हर तरह हाजिर हैं, तो तुम नाहक क्यों जान देता हो?

सकीना जैसे शर्म को निगलकर बोली-बहन, में चाहे मा जाऊ, पर इस गरीबी को मिटाकर छोड़गी। मैं इस हालत में न होनी, नी बावजी को क्यों मुझ पर रहम आता, क्यों वह मर घर आतं, क्यों उन्हें बदनाम होकर घर से भागना पड़ता? मारी मुसीबत की जड़ गरीबी हैं। इसका खात्मा करके छोडूंगी।

एक क्षण के बाद उसने पठानिने से कहा- जग जाकर किसी तंबालन से पान ही लगवा ला! अब और क्या खातिर करे आपकी ?

बुढिया को इस बहाने से टालकर सकीना धीरे स्वर में बोली-यह मुहम्मद सलीम की ग्यत है। आप जब मुझ पर इतना रहम करती हैं, तो आपमें क्या परदा के रू? जो होना था, वह तो हो ही गया। वङ्ग यहां कई बार आए। खुदा जानता है जो उन्होंने भी मेरी तरफ आंख उठाई हो। मैं भी उनका अदब करती थी। हां, उनकी शराफत का असर जरूर मेरे दिल पर होता था। एकाएक मेरी शादी का जिक्र सुनकर वावजा एक नशे की-सी हालत में आए और मुझसे मुहब्बत जाहिर की। खुदा गवाह है बहन, में एक हर्फ भी गलत नहीं कह रही हैं। उनकी प्यार की बातें सुनकर मुझे भी सुध-बुध भूल गई । मेरो जैसी औरत के साथ ऐसा शरीफ आदमी यों मुहब्बत करे, यह मुझे ले उडा। में वह नेमत पाकर दीवानी हो गई। जब वह अपना तन-मन सब मुझ पर निसार कर रहे थे, तो मैं काठ की पुतली तो न थी। मुझमें एस्सी क्या खूबी उन्होंने देखी, यह मैं नहीं जानती। उनकी बातों से सही मालूम होता था कि वह आपसे खुश नहीं हैं। बहन, मैं इस वक्त आपसे साफ-साफ बातें कर रही " मुआफ कीजिएगा। आपकी तरफ से उन्हें कुछ मलाल जरूर था आर जैसे फाका करने के बाद अमीर आदमी भी जरदा, पुलाव भलकर सत्तु पर टूट पड़ता है, उसी तरह उनका दिल आपकी तरफ से मायूस होकर मेरी तरफ लपका। वह मुहब्बत के भूखे थे। मुहब्बत के लिए उनकी रूह तड़पती रही थी। शायद यह नंमत उन्हें कभी मयस्सर ही न हुई। वह नुमाइश से खुश होने