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410:प्रेमचंद रचनावाली-5
 

न था। तिनककर बोली-तो क्या तुमने समझा था कि बिना कुछ किए-धरे अच्छे मकान रहने को मिल जाएंगे? संसार में जो अधिक से अधिक कष्ट सह सकता है, उसी की विजय होती है।

मतई जमादार ने कहा-हड़ताल से नुकसान तो सभी का होगा, क्या तुम हुए, क्या हम हुए, लेकिन बिना धुएं के आगे नहीं जलती। बहूजी के सामने हम लोगों ने कुछ न किया, तो समझ लो, जन्म-भर ठोकर खानी पड़ेगी। फिर ऐसा कौन है, जो हम गरीबों का दुख-दर्द समझेगा। जो कहो नौकरी चली जाएगी, तो नौकर तो हम सभी हैं। कोई सरकार का नौकर है, कोई रईस का नौकर है। हमको यहां कौल-कसम भी कर लेनी होगी कि जब तक हड़ताल रहे, कोई किसी की जगह पर न जाय, चाहे भूखों मर भले ही जाएं।

सुमेर ने मतई को झिड्क दिया--तुम जमादार, बात समझते नहीं, बीच में कूद पड़ते हो। तुम्हारी और बात है, हमारी और बात है। हमारा काम सभी करते हैं, तुम्हारा काम और कोई नहीं कर सकता।

मैकू ने सुमेर का समर्थन किया-यह तुमने बहुत ठीक कहा, सुमेर चौधरी ! हमीं को देखो। अब पढ़े-लिखे आदमी धुलाई का काम करने लगे हैं। जगह-जगह कांपनी खुल गई हैं। ग्राहक के यहां पहुंचने में एक दिन की भी देर हो जाती है, तो वह कपड़े कपनी भेज देता है। हमारे हाथ से गाहक निकल जाता है। हड़ताल दस-पांच दिन चली, तो हमारा रोजगार मिट्टी में मिल जाएगा। अभी पेट की रोटियां तो मिल जाती हैं। तब तो रोटियों के लाले पड़ जाएंगे।

मुरली खटीक ने ललकारकर कहा-जब कुछ करने का बूता नहीं तो लड़ने किस चिरते पर चले थे? क्या समझते थे, रो देने से दूध मिल जाएगा? वह जमाना अब नहीं है। अगर अपना और बाल-बच्चों का सुख देखना चाहते हो, तो सब तरक़ की आफत-बला सिर पर लेनी पड़ेगी। नहीं जाकर घर में आराम से बैठो और मक्खियों की तरह भरो।

ईदू ने धार्मिक गंभीरता से कही-होगा, वही जो मुकद्दर में है। हाय-हाय करने से कुछ होने को नहीं। हाफिज हलीम तकदीर ही से बड़े आदमी हो गए। अल्लाह की रजा होगी, तो मकान बनते देर न लगेगी।

जंगली ने इसका समर्थन किया-बस, तुमने लाख रुपये की बात कह दी, इंदू मिया हमारा दूध का सौदा ठहरा। एक दिन दूध न पहुंचे या देर हो जाय, तो लोग घुड़कियां जमाने लगते हैं-हम डेरी से दूध लेंगे, तुम बहुत देर करते हो। हड़ताल दस-पांच दिन चल गई, तो हमारा तो दिवाला निकल जाएगा। दूध तो ऐसी चीज नहीं कि आज न बिके, कल बिक जाय।

ईदू बोला-वही हाल तो सागपात का भी है भाई, फिर बरसात के दिन हैं, सुबू की चीज शाम को सड़ जाती है, और कोई सेंत में भी नहीं पूछता।।

अमीरबेग ने अपनी सारस की-सी गर्दन उठाई-बहूजी, मैं तो कोई कायदा-कानून नहीं जानता; मगर इतना जानता हूं, कि बादशाह रैयत के साथ इंसाफ जरूर करते हैं। रात को भेस बदलकर रैयत का हाल-चाल जानने के लिए निकलते हैं, अगर ऐसी अरजी तैयार की जाय जिस पर हम सबके दसखुत हों और बादशाह के सामने पेश की जाय, तो उस पर जरूर लिहाज किया जाएगा।