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कर्मभूमि:413
 

जो है, वह भी गायब हो जाएगी।"

सुखदा ने अपनी जांघ पर हाथ पटककर कहा-सहानुभूति से काम चलता, तो फिर रोना किस बात का था? लोग स्वेच्छा से नीति पर चलते, तो कानून क्यों बनाने पड़ते? मैं इस घर में रहकर और अमीर का ठाट रखकर जनता के दिलों पर काबू नहीं पा सकती। मुझे त्याग करना पड़ेगा। इतने दिनों से सोचती ही रह गई।

दूसरे दिन शहर में अच्छी-खासी हड़ताल थी। मेहतर तो एक भी काम करता न नजर आता था। कहारों और इक्के-गाड़ी वालों ने भी काम बंद कर दिया था। साग-भाजी की दूकानें भी आधी से ज्यादा बंद थीं। कितने ही घरों में दूध के लिए हाय-हाय मची हुई थी। पुलिस दूकानें खुलवा रही थी और मेहतरों को काम पर लाने की चेष्टा कर रही थी। उधर जिले के अधिकारी मंडल में इस समस्या को हल करने का विचार हो रहा था। शहर के रईस और अमीर भी उसमें शामिल थे।

दोपहर को समय था। घटी उमड़ी चली आती थी, जैसे आकाश पर पीला लेप किया जा रहा हो। सड़कों और गलियों में जगह- जगह पानी जमा था। उसी ३चड़ में जनता इधर- उधर दौड़ती फिरती थी। सुखदा के द्वार पर एक भीड़ लगी हुई थी कि सहसा शान्तिकुमार घुटने तक कीचड़ लपेटे आकर बरामदे में खड़े हो गए। कल की बातों के बाद आज वहां आते उन्हें संकोच हो रहा था। नैना ने उन्हें देखा, पर अंदर न बुलाया। सुखदा अपनी माता से बातें कर रही थी। शान्तिकुमार एक क्षण खड़े रहे, फिर हताश होकर चलने को तैयार हुए।

सुखद ने उनकी रोनी सूरत देखी, फिर भी उन पर व्यंग्य-प्रहार करने से न चुकी- किसी ने आपको यहां आते देख तो नहीं लिया, डॉक्टर साहब?

शान्तिकुमार ने इस व्यग्य की चोट को विनोद से रोका-खूब देख-भालकर आया हू। कोई यहां देख भी लेगा, तो कह दूंगा, रुपये उधार लेने आया हूं।

रेणुका ने डॉक्टर साहब से देवर का नाता जोड़ लिया था। आज सुखदा ने कल का वृत्तांत मुनाकर उसे डॉक्टर साहब को आड़े हाथों लेने की सामग्री दे दी थी, ।गांकि अदृश्य रूप से डॉक्टर साहब के नीति-भेद का कारण वह खुद थीं। उन्हीं ने ट्रस्ट का र उनके सिर पर रखकर उन्हें सचिंत कर दिया था।

उसने डॉक्टर का हाथ पकड़कर कुर्सी पर बैठाते हुए कहा तो चूड़ियां पहनकर बैठो नई, यह मूॐ क्यों बढ़ा ली है?

शान्तिकुमार ने हंसते हुए कहा-मैं तैयार हैं, लेकिन मुझसे शादी करने के लिए तैयार रहिएगा। आपको मर्द बनना पड़ेगा।

रेणुको ताली बजाकर बोली- मैं तो बूढी हुई, लेकिन तुम्हारा खसम ऐसा ढूंदूंगी जो तुम्हें सात परदों के अंदर रखे और गालियों से बात करे। गहने मैं बनवा दूंगी। सिर में सिंदूर डालकर घूघट निकाले रहना। पहले खसम खा लेगा, तो उसका भूठन मिलेगा, समझ गए, और उसे देवता का प्रसाद समझ कर खाना पड़ेगा। जरा भी नाक-भौं सिकोड़ी, तो कुलच्छनी कहलाओगे। उसके पांव दबाने पड़ेंगे, उसकी धोती छांटनी पड़ेगी। वह बाहर से आएगी तो उसके पांव धोने पड़ेंगे, और बच्चे भी जनने पड़ेंगे। बच्चे न हुए, तो वह दूसरा ब्याह कर लेगा फिर घर में लौंडी बनकर रहना पड़ेगा।