पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कर्मभूमि:417
 

हुए बोले-यह बच्चों के मिठाई खाने के लिए है।

डिप्टी ने अशर्फियां जेब से निकालकर मेज पर रख दी और बोला--आप पुलिस वालों को बिल्कुल जानवर ही समझते हैं क्या, सेठजी? क्या लाल पगड़ी सिर पर रखना ही इंसानियत का खुन करना है? मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि देवीजी को तकलीफ न होने पाएगी। तकलीफ उन्हें दी जाती है जो दूसरों को तकलीफ देते हैं। जो गरीबों के हक के लिए अपनी जिंदगी कुरबान कर दे, उसो अगर कोई सताए, तो वह इंसान नहीं, हैवान भी नहीं, शैतान है। हमारे सीगे में ऐसे आदमी हैं और कसरत से हैं। मैं खुद फरिश्ता नहीं हूं लेकिन ऐसे मुआमले में मैं पान तक खाना हराम समझता है। मंदिर वाले मामले में देवीजी जिस दिलेरी से मैदान में आकर गोलियों के सामने खड़ी हो गई थीं, वह उन्हीं का काम था।

सामने सड़क पर जनता का समूह प्रतिक्षण बढ़ता जाता था। बार-बार जय-जयकार की ध्वनि उठ रही थी। स्त्री और पुरुष देवी जी के दर्शन को भागे चले आते थे।

भीतर नैना और सुखदा में समर छिड़ा हुआ था।

सुख़दा ने थाली सामने से हटाकर कहा-मैंने कह दिया, मैं कछ न रवाऊंगी।

नैना ने उसका हाथ पकड़कर कहा-दो-चार फोर ही खा लो भाभी, तुम्हारे पैरों पड़ती हैं। फिर में जाने यह दिन कब आए?

उसकी आंख सेजन हो गई।

सुखदा निदरता से बोली-तुम मुझे व्यर्थ में दिक कर रही हो बीवी, मुझे अभी बहुत- सी तैयारियां करनी हैं और उधर डिप्टी जल्दी मचा रहा है। देखती नहीं हो, द्वार पर डोन्नी खड़ी है। इस वक्त खान की किसे मृझती है?

नैना प्रेम-विहन कंठ से बोली-तुम अपना काम करती रही, मैं तुम्हें कौर बनाकर खिलाती जाऊंगी।

जैसे माना खेप्नले बच्चे के पीछे दौड़-दौड़कर उसे खिलाती है, उसी तरह नैना भाभी को खिलाने लगी। मुरबुदा कभी इस आल्मारी के पाए जातो, कभः २: संदूक के पास। किसी मंदूक में सिंदूर की डिबिया निकालती, किसों से साड़ियां। नैना एक कौर खिलाकर फिर थाल के पास जातो और दृमरा कौर लेकर दौड़ती।।

सुखदा ने पांच छ: कौर खाकर कहा--बस, अब पानी पिला दी।

नैना ने उसके मुंह के पास कौर ले जाकर कहा-बस यह कोर ले लो, मेरी अच्छी भाभी सुखदा ने मुंह खोल दिया और ग्रास के साथ आंसू भी पी गई।

"बस एक और।"

"अब एक कौर भी नहीं।"

"मेरी खातिर से।"

सुखदा ने ग्रास ले लिया।

"पानी भी दोगी या खिलाती ही जाओगी।"

"बस, एक ग्रास भैया के नाम को और ले लो।"

"ना। किसी तरह नहीं।"

नैना की आंखों में आंसू थे प्रत्यक्ष, सुखदा की आंखों में भी आंसू थे, मगर छिपे हुए।