पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
438:प्रेमचंद रचनावली
 


मचाओगे, तो कुछ न होगा, उल्टे और डंडे पड़ेंगे।

सलोनी ने कहा — जब मोटे स्वामी मानें।

गूदड़ ने चौधरीपन की ली — मानेंगे कैसे नहीं, उनको मानना पड़ेगा।

एक काले युवक ने, जो स्वामीजी के उग्र भक्तों में था, लज्जित होकर कहा — भैया, जिस लगन से तुम काम करते हो, कोई क्या करेगा।

दूसरे दिन उसी कड़ाई से प्यादों ने डांट-फटकार की; लेकिन तीसरे दिन से वह कुछ नर्म हो गए। सारे इलाके में खबर फैल गई कि महन्तजी ने आधी छूट के लिए सरकार को लिखा है। स्वामीजी जिस गांव में जाते थे, वहां लोग उन पर आवाजें कसते। स्वामीजी अपनी रट अब भी लगाए जाते थे। यह सब धोखा है, कुछ होना - हवाना नहीं है, उन्हें अपनी बात की आ पड़ी थी — असामियों की उन्हें इतनी फिक्र न थी, जितनी अपने पक्ष की। अगर आधी छूट का हुकुम आ जाता, तो शायद वह यहां से भाग जाते। इस वक्त तो वह इस वादे को धोखा साबित करने की चेष्टा करते थे, और यद्यपि जनता उनके हाथ में न थी, पर कुछ-न-कुछ आदमी उनकी बातें सुन ही लेते थे। हां, इस कान सुनकर उस कान उड़ा देते।

दिन गुजरने लगे, मगर कोई हुक्म नहीं आया। फिर लोगों में संदेह पैदा होने लगा। जब दो सप्ताह निकल गए, तो अमर सदर गया और वहां सलीम के साथ हाकिम जिला मि० गजनवी से मिला। मि० गजनवी लंबे, दुबले, गोरे शौकीन आदमी थे। उनकी नाक इतनी लंबी और चिबुक इतना गोल था कि हास्य मूर्ति लगते थे। और थे भी बड़े विनोदी। काम उतना ही करते थे; जितना जरूरी होता था और जिसके न करने से जवाब तलब हो सकता था। लेकिन दिल के साफ, उदार, परोपकारी आदमी थे। जब अमर ने गांवों को हालत उनसे बयान की, तो हंसकर बोले-आपके महन्तजी ने फरमाया है, सरकार जितनी मालगुजारी छोड़ दे, मैं उतनी ही लगान छोड़ दूंगा। हैं मुंसिफ मिजाज!

अमर ने शंका की — तो इसमें बेइंसाफी क्या है?

"बेइंसाफी यही है कि उनके करोड़ों रुपये बैंक में जमा हैं, सरकार पर अरबों कर्ज

"तो आपने उनकी तजवीज पर कोई हुक्म दिया?"

"इतनी जल्द। भला छः महीने तो गुजरने दीजिए। अभी हम काश्तकारों की हालत की जांच करेंगे, उसकी रिपोर्ट भेजी जाएगी, फिर रिपोर्ट पर गौर किया जाएगा, तब कहीं कोई हुक्म निकलेगा।”

“तब तक तो असामियों के बारे-न्यारे हो जाएंगे। अजब नहीं कि फसाद शुरू हो जाए।”

"तो क्या आप चाहते हैं, सरकार अपनी बजा छोड़ दें? यह दफ्तरी हुकूमत है। वहां सभी काम जाब्ते के साथ होते हैं। आप हमें गालियां दें, हम आपका कुछ नहीं कर सकते। पुलिस में रिपोर्ट होगी। पुलिस आपका चालान करेगी। होगा वही जो मैं चाहूंगा, मगर जाब्ते के साथ। ग्वैर, यह तो मजाक था। आपके दोस्त मि० सलीम बहुत जल्द उस इलाके की तहकीकात करेंगे, मगर देखिए, झूठी शहादतें न पेश कीजिएगा कि यहां से निकाले जाएं। मि॰ सलीम आपकी बड़ी तारीफ करते हैं, मगर भाई, मैं तुम लोगों से डरता हूँ। खासकर तुम्हारे स्वामी से बड़ा ही मुफसिद आदमी है। उसे फंसा क्यों नहीं देते? मैंने सुना है, वह तुम्हें बदनाम