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कर्मभूमि: 443
 


बादल फिर घिरा आता था। रास्ता भी खराब था। उस पर अंधेरी रात, नदियों की उतार; मगर उसका गजनवी से मिलना जरूरी था। कोई तजर्बेकार अफसर इस कदर बदहवास न होता; पर सलीम नया आदमी था।

दोनों आदमी रात—भर की हैरानी के बाद सवेरे सदर पहुंचे। आज मियां सलीम को आटे-दाल का भाव मालूम हुआ। यहां केवल हुकूमत नहीं है, हैरानी और जोखिम भी है, इसका अनुभव हुआ। जब पानी का झोंका आता, या कोई नाला सामने आ पड़ता, तो वह इस्तीफा देने की ठान लेता- नौकरी है या बला है। मजे से जिंदगी गुजरती थी। यहां कुत्ते-खसी में आ फंसा। लानत है ऐसी नौकरी पर। कहीं मोटर खड्डे में जा पड़े, तो हड्डियों का भी पता न लगे। नई मोटर चौपट हो गई।

बंगले पर पहुंचकर उसने कपड़े बदले, नाश्ता किया और आठ बजे गजनवी के पास जा पहुंचा। थानेदार कोतवाली में ठहरा था। उसी वक्त वह भी हाजिर हुआ।

गजनवी ने वृत्तांत सुनकर कहा—अमरकान्त कुछ दीवाना तो नहीं हो गया है। बातचीत में बड़ा शरीफ मालूम होता था, मगर लीडरी भी मुसीबत है। बेचारा कैसे नाम पैदा करें। शायद हजरत समझे होंगे, यह लोग तो दोस्त हो ही गए, अब क्या फिक्र। 'सैया भए कोतवाल अब डर काहे का।' और जिलों में भी तो शोरिश हैं। मुमकिन है, वहां से ताकीद हुई हो। सूझी है। इन सभी की डर की और हक यह है कि किसानों की हालत नाजुक है। यों भी बेचारों को पेट भर दाना न मिलता था, अब तो जिसे और भी सस्ती हो गई। पूरा लगान कहां, आधे की भी गुंजाईश नहीं है, मगर सरकार का इंतजाम तो होना ही चाहिए। हुकूमत में कुछ-कुछ खौफ और रोब का होना भी जरूरी है, नहीं उसकी सुनेगा कौन? किसानों को आज यकीन हो जाय कि आधा लगान देकर उनकी जान बच सकती है, तो कल वह चौथाई पर लड़ेंगे और परसों पूरी मुआफ़ी का मुतालवी करेंगे। मैं तो समझता हूं, आप जाकर लाला अमरकान्त को गिरफ्तार कर लें। एक बार कुछ हलचल मचेगा, मुमकिन है, दो-चार गांवों में फसाद भी हो, मगर खुले हुए फमाद को रोकना उतना मुश्किल नहीं है, जितनी इस हवा को मवाद जब फोड़े की सूरत में आ जाता है, तो उसे चीरकर निकाल दिया जा सकता है, लेकिन वही दिल, दिमाग की तरफ चला जाय, तो जिंदगी का खात्मा हो जाएगा। आप अपने साथ सुपरीटेंडेंट पुलिस को भी ले लें और अमर को दफा एक सौ चौबीस में गिरफ्तार कर लें। उस स्वामी को भी लीजिए। दारोगाजी, आप जाकर साहब बहादुर से कहिए, तैयार रहें।

सलीम ने व्यथित कंठ से कहा—मैं जानता कि यहां आते-ही-आते इस अजाब में जान फंसेगी, तो किसी और जिले की कोशिश करता। क्या अब मेरा तबादला नहीं हो सकता?

थानेदार ने पूछा-हुजूर, कोई खत न देंगे?

गजनवी ने डांट बताई-खत की जरूरत नहीं है। क्या तुम इतना भी नहीं कह सकते?

थानेदार सलाम करके चला गया, तो सलीम ने कहा-आपने इसे बुरी तरह डांटा, बेचारा रुआंसा हो गया। आदमी अच्छा है।

गजनवी ने मुस्कराकर कहा—जी हां, बहुत अच्छा आदमी है। रसद खूब पहुंचाता होगा, मगर रिआया से उसकी दस गुनी वसूल करता है। जहां किसी मातहत ने जरूरत से ज्यादा खिदमत और खुशामद की, मैं समझ जाता हूं कि यह छंटा हुआ गुर्गा है। आपकी लियाकत का यह हाल है कि इलाके में सदा ही वारदातें होती हैं, एक का भी पता नहीं चलता। इसे