पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४४४

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444: प्रेमचंद रचनावली-5 झूठी शहादतें बनाना भी नहीं आता। बस, खुशामद की रोटियां खाता है। अगर सरकार पुलिस का सुधार कर सके, तो स्वराज्य की मांग पचास साल के लिए टल सकती है। आज कोई शरीफ आदमी पुलिस से सरोकार नहीं रखना चाहता। थाने को बदमाशों का अड्डा समझकर उधर से मुंह फेर लेता है। यह सीगा इस राज का कलंक है। अगर आपको दोस्त को गिरफ्तार करने में तकल्लुफ हो, तो मैं डी० एस० पी० को ही भेज दें। उन्हें गिरफ्तार करना फर्ज हो गया है। अगर आप यह नहीं चाहते कि उनकी जिल्लत हो, तो आप जाइए। अपनी दोस्ती का हक अदा करने ही के लिए जाइए। मैं जानता हूं, आपको सदमा हो रहा है। मुझे खुद रंज है। उस थोड़ी देर की मुलाकात में ही मेरे दिल पर उनका सिक्का जम गया। मैं उनके नेक इरादों की कद्र करता हूं। लेकिन हम और वह दो कैंपों में हैं। स्वराज्य हम भी चाहते हैं। मगर इन्कलाब के सिवा हमारे लिए दूसरा रास्ता नहीं है। इतनी फौज रखने की क्या जरूरत है, जो सरकार की आमदनी का आधा हजम कर जाय। फौज का ख़र्च आधा कर दिया जाय, तो किसानों का लगान बड़ी आसानी से आधा हो सकता है। मुझे अगर स्वराज्य से कोई खौफ है तो यह कि मुसलमानों की हालत कहीं और खराब न हो जाय। गलत तवारीखें पढ़-पढ़कर दोनों फिरके एक-दूसरे के दुश्मन हो गए हैं और मुमकिन नहीं कि हिन्दू मौका पाकर मुसलमानों से फर्जी अदावतों का बदला न लें; लेकिन इस खयाल से तसल्ली होती है कि इस बीसवीं सदी में हिन्दुओं जैसी पढ़ी-लिखी जमाअत मजहबी गरोहबंदी को पनाह नहीं ले सकतीं। मजहब का दौर खतम हो रहा है, बल्कि यों कहो कि खतम हो गया। सिर्फ हिन्दुस्तान में उनमें कुछ-कुछ जान बाकी है। यह तो दौलत का जमाना है। अब कौम में अमीर और गरीब, जायदाद वाले और मरभूखे, अपनी-अपनी जमाअतें बनाएंगे। उसमें कहीं ज्यादा खुरेजी होगी, कहीं ज्यादा तंगदिली होगी। आखिर एक-दो सदी के बाद दुनिया में एक सल्तनत हो जाएगी। सबका एक कानून, एक निजाम होगा, कौम के खादिम कौम पर हुकूमत करेंगे, मजहब शख्सी चीज होगी। न कोई राजा होगा, न कोई परजा। फोन की घंटी बजी, गजनवी ने चोगा कान से लगाया–मि० सुलोम कब चलेंगे? गजनवी ने पूछा-आप कब तक तैयार होंगे? "मैं तैयार हैं। तो एक घंटे में आ जाइए। सलीम ने लंबी सांस खींचकर कहा-तो मुझे जाना ही पड़ेगा? "बेशक । मैं आपके और अपने दोस्त को पुलिस के हाथ में नहीं देना चाहता। किसी हीले में अमर को यहीं बुला क्यों न लिया जाय? "वह इस वक्त नहीं आएंगे। सलीम ने सोचा, अपने शहर में जब यह खबर पहुंचेगी कि मैंने अमर को गिरफ्तार किया, तो मुझ पर कितने जूते पड़ेंगे । शान्तिकुमार तो नोंच ही खाएंगे और सकीना तो शायद मेरा मुंह देखना भी पसंद न करे। इस खयाल से वह कांप उदा। सोने की हंसिया न उगलते बनती थी, न निगलते। उसने उठकर कहा-आप डी० एस० पी० को भेज दें। मैं नहीं जाना चाहता। गजनवी ने गंभीर होकर पूछा-आप चाहते हैं कि उन्हें वहीं से हथकड़ियां पहनाकर और कमर में रस्सी डालकर चार कांस्टेबलों के साथ लाया जाय और जब पुलिस उन्हें लेकर