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कर्मभूमि:449
 

कर्मभूमि : 449 सलीम ने अपनी सफाई दी–भाई, इंसान-इंसान है, दो मुखालिफ गिरोहों में आकर दिल में कोना या मलाल पैदा हो जाय, तो ताज्जुब नहीं। पहले डी० एस० पी० को भेजने की सलाह थी; पर मैंने इसे मुनासिब न समझा।

"इसके लिए मैं तुम्हारा बड़ा एहसानमंद हूँ। मेरे ऊपर मुकदमा चलाया जाएगा?"
"हां, तुम्हारी तकरीरों की रिपोर्ट मौजूद है, और शहादतें भी जमा हो गई हैं। तुम्हारा

क्या खयाल है, तुम्हारी गिरफ्तारी से यह शारिश दब जाएगी या नहीं?" 'कुछ कह नहीं सकता। अगर मेरी गिरफ्तारी या सजा से दब जाय, तो इसका दब जाना ही अच्छा।" उसने एक क्षण के बाद फिर कहा- रिया को मालूम है कि उनके क्या-क्या हक हैं, यह मालूम है कि हकों की हिफाजत के लिए कुर‌बानिया करनी पड़ती हैं। मेरा फर्ज यहीं तक खत्म हो गया। अब वह जाने और उनका काम जाने। मुमकिन है, सख्तियों से दब जाएं, मुमकिन है, न दबें, लेकिन दबे या उठे, उन्हें चोट जरूर लगी है। रिया का दब जाना, किसी सरकार की कामयाबी की दलील नहीं हैं।

मोटर के जाते ही सत्य मुन्नी के सामने चमक उठा। वह आवर में चिल्ला उठीं- लाला

पकडे गए ! और उसी आवेश में मोटर के पीछे दौड़ी। चिल्लाती जाती थी-लाला पकड़े गए। वर्षाकाल में किसानों को हार में बहुत काम नहीं होना। अधिकतर लोग घरों में होते हैं। मुन्नी की आवाज मानो जुतरे का बिगुन धीं। दम. के -दम में सारे गांव में यह आवाज गूंज उठी- भैया पकड़े गए ! स्त्रियां घरों में से निकन पट्टी–भैया पकड़े गए। क्षण मात्र में सारा गांव जमा हो गया और सडक की तरफ दौड़ा। मोटर घूमकर सड़क में जा रही थी। पगड़ियों का एक संधा रास्ता था। लोगों ने अनुमान किया, अभी इस रास्ते मोटर पकी जा सकती हैं। सब उसी रास्ते दौडे। काशी बोला--मरना तो एक दिन है ही। मुन्नी ने कहा- पकड़ना है, तो सबको पकड़े। ले चलें सबको पयाय बन्ना- सरकार का काम है चोर -बदमाशों को पकड़ना यो 'सों को जो दूसरों के लिए जान लडा रहे हैं? वह देखो मोटर आ रही हैं। बस, सब रास्ते में खड़े हो जाओ। कोई न हटना, चिल्लाने दो। सलीम मोटर रोकता हुआ बोला-अब कहो भाई। निकालूं पिस्तौल? अमर ने उसका हाथ पकड़कर कहा-नहीं-नहीं, में इन्हें समझाए देता हूं। "मुझे पुलिस के दो- चार आदमियों को साथ ले लेना था।" "घबराओ मत, पहले मैं मरूंगा, फिर तुम्हारे ऊपर कोई हाथ उठाएगा।" अमर ने तुरंत मोटर से सिर निकालकर कहा-बहनो और भाइयो, अब मुझे बिदा कीजिए। आप लोगों के सत्संग में मुझे जितना स्नेह और सुख मिला, उसे मैं कभी भूल नहीं सकता। मैं परदेशी मुसाफिर था। आपने मुझे स्थान दिया, आदर दिया, प्रेम दिया । मुझसे भी जो कुछ सेवा हो सकी, वह मैंने की। अगर मुझसे कुछ भूल-चूक हुई हो, तो क्षमा करना। जिस काम का बीड़ा उठाया है, उसे छोड़ना मत, यही मेरी याचना है। सब काम ज्यों-का- त्यों होता रहे, यही सबसे बड़ा उपहार हैं, जो आप मुझे दे सकते हैं। प्यारे बालक, मैं जा रहा