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कर्मभूमि:451
 


पाचवा खंड

एक

लखनऊ का सेंट्रल जेल शहर से बाहर खुली हुई जगह में है। सुखदा उसी जेल के जनाने वार्ड में एक वृक्ष के नीचे खड़ी बादलों की घुड़दौड़ देख रही है। बरसात बीत गई है। आकाश में बड़ी धूम से घेर-घार होता है; पर छींटे पड़कर रह जाते हैं। दानी के दिल में अब भी दया है; पर हाथ खाली है। जो कुछ था, लुटा चुका।

जब कोई अंदर आता है और सदर द्वार खुलता है, तो सुखदा द्वार के सामने आकर खड़ी हो जाती हैं। द्वार एक ही क्षण में बंद हो जाता है, पर बाहर के संसार की उसी एक झलक के लिए वह कई-कई घंटे उस वृक्ष के नीचे खड़ी रहती है, जो द्वार के सामने है। उसे मीले-भर की चारदीवारी के अंदर जैसे दम घुटता है। उसे यहां आए अभी पूरे दो महीने भी नहीं हुए, पर ऐसा जान पड़ता है, दुनिया में न जाने क्या क्या परिवर्तन हो गए। पथिकों को राह चलते देखने में भी अब एक विचित्र आनंद था। बाहर का संसार कभी इतना मोहक न था।

वह कभी-कभी सोचती हैं—उसने सफाई दी होती, तो शायद बरी हो जाती, पर क्या मालूम था, चित्त की यह दशा होगी। वे भावनाएं जो कभी भूलकर मन में न आती थीं, अब किसी रोगों की कुपध्य-चेष्टाओं की भांति मन को उग्न करती रहती थीं। झूला झूलने की उसे कभी इच्छा न होती थी, पर आज बार-बार जी चाहता था—रस्सी हो, तो इसी वृक्ष में झूला डालकर झुले। अहाते में ग्वालों की लड़कियां भैंस चराती हुई आम की उबाली हुई गुठलियां तोड़-तोड़कर खा रही हैं। सुखदा ने एक बार बचपन में एक गुठली चखी थी। उस वक्त वह कसैली लगी थी। फिर उस अनुभव को उसने नहीं दुहराया पर इस समय उन गुठलियों पर उसका मन ललचा रहा है। उनकी कठोरता, उनका सोंधापन उनकी सुगंध उसे कभी इतनी प्रिय न लगी थी। उसका चित्त कुछ अधिक कोमल हो गया है, जैसे पाल में पड़कर कोई फल अधिक पीला, स्वादिष्ट, मधुर, मुलायम हो गया हो। मुन्ने को वह एक क्षण के लिए भी आंखों से ओझल न होने देती। वहीं उसके जीवन का आधार था। दिन में कई बार उसके लिए दूध, हलवा आदि पकाती। उसके साथ दौड़ती, खेलती यहां तक कि जब वह बुआ या दादा के लिए रोता, तो खुद रोने लगती थी। अब उसे बार-बार अमर की याद आती है। उसकी गिरफ्तारी और सजा को सामाचार पाकर उन्होंने जो खत लिखा होगा, उसे पढ़ने के लिए उमका मन तड़प-तड़प कर रह जाता है।

लेडी मेट्रन ने आकर कहा—सुखदादेवी, तुम्हारे ससुर तुमसे मिलने आए हैं। तैयार हो जाओ। साहब ने बीस मिनट का समय दिया है।

सुखदा ने चटपट मुन्ने का मुंह धोया, नए कपड़े पहनाए, जो कई दिन पहले जेल में मिले थे, और उसे गोद में लिए मेट्रन के साथ बाहर निकली, मानो पहले ही से तैयार बैठी हो।

मुलाकात का कमरा जेल के मध्य में था और रास्ता बाहर ही से था। एक महीने के