पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४५४

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454:प्रेमचंद रचनावली-5
 

454:प्रेमचंद रचनावली-5 एक ही सांस में अपने हृदय का सारा मालिन्य उंडेल देने के बाद लालाजी दम लेने के लिए रुक गए। जो कुछ इधर-उधर लग्-चिपटी रह गया हो, शायद उसे भी खुरचकर निकाल देने का प्रयत्न कर रहे थे। सुखदा ने पूछा-तो आप वहां कब जा रहे हैं? लालाजी ने तत्परता से कहा-आज ही, इधर ही से चला जाऊंगा। सुना है, वहां जोरों से दमन हो रहा है। अब तो वहां का हाल समाचार-पत्रों में भी छपने लगा। कई दिन हुए, मुन्नी नाम की कोई स्त्री भी कई आदमियों के साथ गिरफ्तार हुई है। कुछ इसी तरह की हलचल सारे प्रांत, बल्कि सारे देश में मची हुई हैं। सभी जगह पकड-धकड़ हो रही हैं। बालक कमरे के बाहर निकल गया था। लालाजी ने उसे पुकारा, तो वह सड़क की ओर भागा। समरकान्त भी उसके पीछे दौड़े। बालक ने समझा, खेल हो रहा है। और तेज दौड़ा। ढाई-तीन साल के बालक की तेजी ही क्या, कितु समरकान्त जैसे स्थूल आदमी के लिए पूरी कसरत थी। बड़ी मुश्किल से उसे पकड़ा । एक मिनट के बाद कुछ इस भाव से बोले, जैसे कोई सारगर्भित कथन हो-मैं तो सोचता हैं, जो लोग जाति-हित के लिए अपनी जान होम करने को हरदम तैयार रहते हैं, उनकी बुराइयों पर निगाह ही न डालनी चाहिए। सखुदा ने विरोध किया-यह न कहिए, दादा । ऐसे मनष्यों का चरित्र आदर्श होरा चाहिए नहीं तो उनके परोपकार में भी स्वार्थ और वासना की गंध आने लगी। | समरकान्त ने तत्त्वज्ञान की बात कही-स्वार्थ मैं उसी को कहता हूं, जिसके मिलने में चित्त को हर्ष और न मिलने से क्षोभ हो। ऐसा प्राणी, जिम हर्ष और क्षोभ हो ही नहीं, मनुष्य नहीं, देवता भी नहीं, जड़ हैं। | सुखदा 'स्कराई–ता संसार में कोई निस्वार्थ हो ही नहीं सकता? " असंभव ! स्वार्थ छोटा हो, तो स्वार्थ है, बड़ी हो, तो उपकार है। मेरा तो विचार हे, ईश्वर-भक्ति भी स्वार्थ है। मुलाकात की समय कब का गुजर चुका था। मेट्रन अब और रिआयत न कर मकती थी। समरकान्त ने बालक को प्यार किया, बहू को आशीर्वाद दिया और बाहर निकले। बहुत दिनों के बाद आज उन्हें अपने भीतर आनंद और प्रकाश का अनुभव हुआ, माना चन्द्रदेव के मुख से मेघों का आवरण हट गया हो। सुखदा अपने कमरे में पहुंची, तो देखा-एक युवती कैदियों के कपड़े पहने उसके कमरे की सफाई कर रही है। एक चौकीदारिन बीच-बीच में उसे डांटती जाती है। चौकीदारिन ने कैदिन की पीठ पर लात मारकर कहा-रांड, तुझे झाडू लगाना भी नहीं आता ! गर्द क्यों उड़ाती है? हाथ दबाकर लगा। कैदिन ने झाडू फेंक दी और तमतमाते हुए मुख से बोली- मैं यहां किसी की टहन करने नहीं आई हूं। "तब क्या रानी बनकर आई है?