पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४६०

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460:प्रेमचंद रचनावली-5
 


भगवान् में उसकी यह अपार निष्ठा देखकर समरकान्त की आंखें सजल हो गईं, सोचा -मुझसे तो ये मूर्ख ही अच्छे जो इतनी पीड़ा और दु:ख सहकर भी तुम्हारा ही नाम रटते हैं। बोले-नहीं भाभी, मुझे अकेले जाने दो। मैं अभी उनसे दो-दो बातें करके लौट आता हूं। सलोनी लाठी संभाल रही थी कि समरकान्त चल पड़े। तेजा और दुरजन आगे-आगे डाक बंगले का रास्ता दिखाते हुए चले। तेजा ने पूछा-दादा, जब अमर भैया छोटे-से थे, तो बड़े शैतान थे न? समरकान्त ने इस प्रश्न का आशय न समझकर कहा-नहीं तो, वह तो लड़कपन ही से बड़ा सुशील था। दरजन ताली बजाकर बोला- अब कहो तेज, हारे कि नहीं? दादा, हमारी-इनका यह झगड़ा है कि यह कहते हैं, जो लड़के बचपन में बड़े शैतान होते हैं, वही बड़े होकर सुशील हो जाते हैं, और मैं कहता हूं, जो लड़कपन में सुशील होते हैं, वही बड़े होकर भी सुशील रहते हैं। जो बात आदमी में है नहीं वह बीच में कहां से आ जाएगी? तेजा ने शंका की-लड़के में तो अकल भी नहीं होती, जवान होने पर कहां से आ जाती है? अखुवे में तो खाली दो दल होते हैं, फिर उनमें डाल-पात कहां से आ जाते हैं? यह कोई बात नहीं। मैं ऐसे कितने ही नामी आदमियों के उदाहरण दे सकता हैं, जो बचपन में बड़े पाजी थे, पर आगे चलकर महात्मा हो गए। समरकान्त को बालकों के इस तर्क में बड़ा आनंद आया। मध्यस्थ बनकर दोनों ओर कुछ सहा त ज थे। रास्ते में एक जगह कीचड़ भरा हुआ था। समरकान्त के जूते कीचड़ में फंसकर पांव से निकल गए। इस पर बड़ी हंसी हुई।। सामने से पांच सवार आते दिखाई दिए। तेजा ने एक पत्थर उठाकरे एक सवार प निशाना मारा। उसकी पगड़ी जमीन पर गिर पड़ी। वह तो घोड़े से उतरकर पगड़ी उठाने लगा. बाकी चारों घोड़े दौड़ाते हुए समरकान्त के पास आ पहुंचे। | तेजा दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया। दो सवार उसके पीछे दौड़े और नीचे से गालिया देने लगे। बाकी तीन सवारों ने समरकान्त को घेर लिया और एक ने हंटर निकालकर ऊपर उठाया ही था कि एकाएक चौंक पड़ा और बोला-अरे ! आप हैं सेठजी । आप यहां कहा? सेठजी ने सलीम को पहचानकर कहा–हां-हां, चला दो हंटर, रुक क्यों गए? अपनी कारगुजारी दिखाने का ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा? हाकिम होकर गरीबों पर हंटर न चला, तो हाकिमी किस काम की? सलीम लुज्जित हो गया-आप इन लौंडों की शरारत देख रहे हैं, फिर भी मुझी का कसूरवार ठहराते हैं। उसने ऐसा पत्थर मारा कि इन दारोगाजी की पगड़ी गिर गई। खैरियत हुई कि आंख में न लगा। | समरकान्त आवेश में औचित्य को भूलकर बोले-ठीक तो है, जब उस लडे ने पत्थर चलाया, जो अभी नादान है, तो फिर हमारे हाकिम साहब जो विद्या के सागर हैं, क्या हंटर भी न चलाएं ? कह दो दोनों सवार पेड़ पर चढ़ जाएं, लौंडे को ढकेल दें, नीचे गिर पड़े। मर जाएगा, तो क्या हुआ, हाकिम से बेअदबी करने की सजा तो पा जाएगा। | सलीम ने सफाई दी–आप तो अभी आए हैं, आपको क्या खबर यहां के लोग कितने मुफसिद हैं? एक बुढ़िया ने मेरे मुंह पर थूक दिया, मैंने जब्त किया, वरना सारा गांव जेल