पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४७०

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470:प्रेमचंद रचनावली-5
 


उसकी रहीमी के जलवे। इतने खूनी-डाकू यहां पड़े हुए हैं, उनके लिए भी आराम का सामान कर दिया। मौका देता है, बार-बार मौका देता है कि अब भी संभल जावें। उसका गुस्सा कौन सहेगा, भैया? जिस दिन उसे गुस्सा आवेगा, यह दुनिया जहन्नुम को चली जाएगी। हमारे- तुम्हारे ऊपर वह क्यों गुस्सा करेगा? हम चींटी को पैरों तले पड़ते देखकर किनारे से निकल जाते हैं। उसे कुचलते रहम आता है। जिस अल्लाह ने हमको बनाया, जो हमको पालता है, वह हमारे ऊपर कभी गुस्सा कर सकता है? कभी नहीं। अमर को अपने अंदर आस्था की एक लहरे-सी उठती हुई जान पड़ी। इतने अटल विश्वास और सरल श्रद्धा के साथ इस विषय पर उसने किसी को बाते करते न सुना था। बात वही थी, जो वह नित्य छोटे-बड़े के मुंह से सुना करता था, पर निष्ठा ने उन शब्दों में जान सी डाल दी थी। जरा देर बाद वह फिर बोला-भैया, तुमसे चक्की चलवाना तो ऐसे ही है, जैसे कोई तलवार से चिड़िए को हलाल करे। तुम्हें अस्पताल में रखना चाहिए थी, बोमारी में दवा से उतना फायदा नहीं होता, जितना मीठी बात से हो जाता है। मेरे सामने यहां कई कैदी बीमार हुए, पर एक भी अच्छा न हुआ। बात क्या है? दवा कैदी के सिर पर पेटक दी जाती है, वह चाहे पिए चाहे फेंक दें। | अमर को इस काली-कलुटी काया में स्वर्ण-जैसा हृदय चमकता दीख पड़ा। मुस्कराकर बोला–लेकिन दोनों काम साथ-साथ कैसे करूगा? मैं अकेला चक्की चला लूंगा और पूरा आटा तुलवा दूंगा।

  • तब तो सार! सवाब तुम्हीं को मिलेगा।

काले खां ने साधु-भाव से कहा--भैया, कोई काम सवाब समझकर नहीं करना चाहिए। दिल को ऐसा बना लो कि सवाब में उसे वहीं मजा आव, जो गाने या खेनने में आता है। कोई काम इसलिए करना कि उममनजात मिलेगी, राजगार है, फिर मैं तुम्हें क्या समझाऊ । तुम खुद इन बातों को मुझसे ज्यादा समझते हो। मैं तो मरीज की तीमारदारी करने के लायक हो नहीं है। मुझे बड़ी जल्दी गुम्मा आ जाता हैं। कितना चाहता हूँ कि गुम्सी न आए, परे जहां किसी ने दो-एक बार मेरी बातें न मानीं और मैं बिगड़ा। वहीं इाक, जिसे अमर ने एक दिन अधमता के पैरों के नीचे लोटते देखा था, आज देवल्व के पद पर पहुंच गया था। उसकी आत्मा से मानो एक प्रकाश-सा निकलकर अमर के अंत:करण को अवलोकित करने लगा। उसने कहा-लेकिन यह तो बुरा मालूम होता है कि मेहनत का काम तुम करो और मैं काले खां ने बात कीटी-भैया, इन बातों में क्या रखा है? तुम्हारा काम इस चक्की से कहीं कठिन होगा। तुम्हें किसी के बात करने तक को मुहलत न मिलेगी। मैं रात को मीठी नींद सोऊंगा। तुम्हें रातें जागकर काटनी पड़ेंगी। जान•जोखिम भी तो है। इस चक्की में क्यों रखा है? यह काम तो गधा भी कर सकती हैं, लेकिन जो काम तुम करोगे, वह विरले कर सकते हैं। सूर्यास्त हो रहा था। काले खां ने अपने पूरे गेहूं पीस इाले थे और दूसरे कैदियों के पास जा-जाकर देख रहा था, किसको कितना काम बाकी है। कई कैदियों के गेहूं अभी समाप्त नहीं हुए थे। जेल कर्मचारी आटा तौलने आ रहा होगा। इन बेचारों पर आफत आ जाएगी, मार