पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४७१

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कर्मभूमि:471
 

कर्मभूमि : 47। पड़ने लगेगी। काले खां ने एक-एक चक्की के पास जाकर कैदियों की मदद करनी शुरू की। इसकी फुर्ती और मेहनत पर नागों को विस्मय होता था। आध घंटे में उसने फिड्डियों की कमी पूरी कर दी। अमर अपना चक्की के पास खड़ा सेवा के पुतले को श्रद्धा - भरी आंखों से देख रहा था, मानो दिव्य दर्शन कर रहा हो। काले खां इधर से फुरसत पाकर नमाज पढ़ने लगा। वहीं बरामदे में उसने वजू किया, अपना कबल जमीन पर बिछा दिया और नमाज शुरू की। उम्मी वक्त जेलर साहब चार वार्ड के साथ आटा तुलवाने में पहुंचे। कैदियों ने अपना-अपना आटा बोरियों में भरा और तराजू के पास आकर खड़ा हो गए। 3ाटा तुलने भग।। जनर ने अमर से पूछा--तुम्हारा साथी कहा गया? अमर ने बनाया, नमाज पढ़ रहा है।

  • उसे बुलाओ। पहले आटा तुलवा ले, फिर नमाज पढे। बट्टा नमाज को दुम बना है।

कह गया है नमाज पढ़न? अमर ने शेड के पीछे की तरफ इशारा करके कहा..उन्हें नमाज़ इन दें, आप आटा ल ले। अलर यह रव देव मकना था कि को केटो ग सक्न नमाज पढ़ने जाय, जब जेल

  • , साक्षात प्रभू पधार हों । गद के पछि नाक बन्न - अत्र से नमाज के बच्चे, आटा क्यों

नहीं तलवता? बचा, हि चचा 'गए हो । नऊ का हाना करने लग, चना चटपट, वरना मारे हंटरों के चमड़ी उधेड़ दृगा।। काले खां दूसरी ही दुनिया में था। जेलर ने समीप जाकर अपनी ही उसकी पीठ में भने इराक -बहरा हो गया है। क्या बै? शामते तो नहीं आई हैं । काले र नमाज में मग्न था। पीछे फिरकर भी न देखा। जेलर ने इाल्नाक 'नात "पाई। काल मिजदे के लिए झुक टू , ' । लात खाकर भी मुंह गिर पड़ा पर तरक्ष 'भलकर फिर शिद में झुक गया। जलर क द जिद पड़ गई कि उसकी नमाज बंद कर दे। एभव हे काले रखा को 2ी जिद पड़ गई हो कि नमाज पूरी किए बगैर न उगा। वह जो मिजद में थी। जलर ने उसे बूटदार ठोकरें जम्मानो शुरू की, एक यार ने नपककर दो गारद सिपाही बुला लिए। दूसरा जेलर साहेब को कुमक पर दाङ। काले jां पर एक तरफ से टकरे पड़ रही थीं, दूसरी तरफ से लकडियां, पर वह सिजदे में सिर 7 उठाता था। हां, प्रत्येक आघात पर उसके मुंह से 'अल्लाह अकबर !' को दल हिला देने त्रान्नी सदा निकल जाती थी। उधर अघातकारियों को उत्तेजना भी बढ़ती जाती थी। जेल का कैदी जेल के बुदा को सिजदा न करके अपने खुद को सिजदा करे, इसे बड़ा जेलर साहब का क्या अपमान हो सकता था। यहां तक कि काले खां के सिर से रुधिर बहने लगा। रकान्त उसकी रक्षा करने के लिए चला था कि एक वाईर ने उसे मजबूती से पकड़ लिया। उधर बराबर आघात हो रहे थे और काले खां बराबर 'अल्लाहो अकबर ।' की सदा लगाए जाता था। आखिर वह आवाज क्षीण होते-होते एक बार बिल्कल बंद हो गई और काले खां रक्त बहने से शिथिल है। गया। मगर चाहे किसी के कानों में आवाज न जाती हो, उसके होंठ अब भी खुले रहे थे और अब भी 'अल्लाहो अकबर' को अन्य ध्वनि निकल रही थी।