पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४७६

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476:प्रेमचंद रचनावली-5
 

संध्या हो गई थी। सलीम और आत्मानन्द दिन-भर काम करने के बाद लौटे थे कि एकाएक नए बंगाली सिविलियन मि० घोष पुलिस कर्मचारियों के साथ आ पहुंचे और गांव भर के मवेशियों की कुर्क करने की घोषणा कर दी। कुछ कसाई पहले ही से बुला लिए गए। थे। वे सस्ता सौदा खरीदने को तैयार थे। दम-के-म में कांस्टेबलों ने मवेशियों को खोल- खोलकर मदरसे के द्वार पर जमा कर दिया। गूदड़, भोला, अलग सभी चौधरी गिरफ्तार हो चुके थे। फसल की कुर्की तो पहले ही हो चुकी थी, मगर फसल में अभी क्या रखा था? इसलिए अब अधिकारियों ने मवेशियों को कुर्क करने का निश्चय किया था। उन्हें विश्वास था कि किसान मवेशियों की कुर्की देखकर भयभीत हो जाएंगे, और चाहे उन्हें कर्ज लेना पड़े, या स्त्रियों के गहने बेचने पड़े, वे जानवरों को बचाने के लिए सब कुछ करने को तैयार होंगे। जानवर किसान के दाहिने हाथ हैं। किसानों ने यह घोषणा सुनी, तो छक्के छूट गए। वे समझे बैठे थे कि सरकार और जो चाहे करे, पर मवेशियों को कुर्क न करेगी। क्या वह किसानों की जड़ खोदकर फेंक देगी। | यह घोषणा सुनकर भी वे यही समझ रहे थे कि यह केवल धमकी है, लेकिन जब मवेशी मदरसे के सामने जमा कर दिए गए और कसाइयों ने उनकी देखभाल शुरू की तो सभी पर जैसे वज्राघात हो गया। अब समस्या उस सीमा तक पहुंची थी, जब रक्त का आदान प्रदान आरंभ हो जाता है। चिराग जलते-जलते जानवरों का बाजार लग गया। अधिकारियों ने इरादा किया है कि सारी रकम एकजाई वसूल करें। गांव वाले आपस में लड़-भिड़कर अपने-अपने लगान के फैसला कर लेंगे। इसकी अधिकारियों को कोई चिंता नहीं है। सलीम ने आकर मिः घोष से कहा- आपको मालूम है कि मवेशियों को कुर्क करने का आपको मजाज नहीं है | मिघोष ने उग्र भाव से जवाब दिया-यह नीति ऐसे अवसरों के लिए नहीं है। विपाप अवसर के लिए विशेष नीति होती है। क्रांति की नीति, शांति की नीति से भिन्न होनी स्वाभाविक है। अभी सलीम ने कुछ उत्तर न दिया था कि मालूम हुआ, अहीरों के मुहाल में लाठी चल गई। मि० घोष उधर लपके। सिपाहियों ने भी संगीने चढाई और उनके पीछे चले। काशी, पयाग आत्मानन्द सब उसी तरफ दौड़े। केवल सलीम यहां खड़ा रहा। जब एकांत हो गया, तो उसने कसाइयों के सरगना के पास जाकर सलाम-अलेक किया और बोला--क्यों भाई साहब । आपको मालूम है, आप लोग इन मवेशियों को खरीदकर यहां की गरीब रिआया के माध कितनी बड़ी बेइंसाफी कर रहे हैं? सरगना की नाम तेगमुहम्मद था। नाटे कद का गठीला आदमी था, पू पहलवान। दीना कुर्ता, चारखाने को तहमद, गले में चांदी की तावीज, हाथ में माटा सोंटी। नम्रता से बोला -साहब, मैं तो माल खरीदने आया हूं। मुझे इससे क्या मतलब कि माल किसका है? चार पैसे का फायदा जहां होता है वहां आदमी जाता ही है। | "लेकिन यह तो सोचिए कि मवेशियों की कुर्की किस सबब से हो रही है? रिआया के साथ आपको हमदर्दी होनी चाहिए। | तेगमुहम्मद पर कोई प्रभाव न हुआ--सरकार से जिसकी लड़ाई होगी, उसकी होगी।