पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४७९

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कर्मभूमि:479
 

सिपाहियों ने सलीम को हाकिम के रूप में देखा था। उसकी मातहती कर चुके थे। उस रोब का कुछ अंश उनके दिल पर बाकी था। उसके साथ जबर्दस्ती करने का साहस न हुआ। जाकर मि० घोष से फरियाद की। घोष बाबू सलीम से जलते थे। उनका खयाल था कि सलीम ही इस आंदोलन को चला रहा है और यदि उसे हटा दिया जाय, तो चाहे आंदोलन तुरंत शांत न हो जाये, पर उसकी जड़ टूट जाएगी, इसलिए सिपाहियों की रिपोर्ट सुनते ही तुरंत घोडा बढाकर सलीम के पास आ पहुंचे और अंग्रेजी में कानून बघारने लगे। मलीम को भी अंग्रेजी बोलने का बहुत अच्छा अभ्यास था। दोनों में पहले कानूनी मुबहसा हुआ, फिर धार्मिक तत्त्व निरूपण का नंबर आया, इसमें उतर कर दोनों दार्शनिक तर्क-वितर्क करने लगे, यहां तक कि अंत में व्यक्तिगत आक्षेपों की बौछार होने लगी। इसके एक ही क्षण बाद शब्द ने क्रिया का रूप धारण किया। मिस्टर घोष ने हंटर चलाया, जिसने सलीम के चेहरे पर एक नीली चौड़ी उभरी हुई रेखा छोड़ दी। आंखें बाल-बाल बच गई। सलीम भी जामे से बाहर हो गया। घोष की टांप पकड़कर जोर से खींचा। साहब घोडे से नीचे गिर पड़े। सलीम उनकी छाती पर चढ़ बैठा और नाक पर घूसा मारा। घोष बाबू मूर्छित हो गए। सिपाहियों ने दूसग घूसा न पड़ने दिया। चार आदमियों ने दौड़कर सलीम को जकड़ लिया। चार आदमियों ने घोष को उठाया और होश में लाए। अंधरा ह, गया था। आर्तक ने सारे गाव का पिशाच की भांति छाप लिया था। लोग शोक से और आतंक के भाव से दबे, मरने वालों की लाशें उठा रहे थे। किसी के मुंह से रोने की आवाज न निकलती थी। जख्म ताजा था, इसलिए टीस न थी। रोना पराजय का लक्षण हैं, इने प्राणियों को विजय का गर्व था। कर अपनी दीनता प्रकट न करना चाहते थे। बच्चे भी जैसे रोना भूल गए थे। | मिस्टर घोष घोड़े पर सवार होकर डाक बंगले गए। सलीम एक सब-इंम्पेक्टर और कई कांस्टेबलों के साथ एक लारी पर सदर भेज दिया गया। यह अहोरिन युवती भी उसी लारी पर भेजी गई थी। पहर रात जाते-जाते चारों अर्धियां गंगा की ओर चलीं। सलोनी लाठी टेकती हुई आगे-आगे गाती जाती थी । सैंया मोरा रूठा जाय सखी री आठ काले खां के आत्म-समर्पण ने अमरकान्त के जीवन को जैसे कोई आधार प्रदान कर दिया। अब तक उसके जीवन को कोई लक्ष्य न था, कोई आदर्श न था, कोई व्रत ने था। इस मृत्यु ने उनकी आत्मा में प्रकाश-सी डाल दिया। काले खां की याद उसे एक क्षण के लिए भी न भूलती और किसी गुप्त शक्ति की भॉत उसे शांति और बल देती थी। वह उसकी वसीयत भा को स्वर्ग में शांति मिले। घड़ी रात इस तरह पूरी करना चाहता था कि काले खां को से उठकर कैदियों का हाल-चाल पूछना और उनके घरों पर पत्र लिखकर रोगियों के लिए दवा- दारू का प्रबंध करना, उनकी शिकायतें सुनना और अधिकारियों से मिलकर शिकायतों को दूर करना, यह सब उसके काम थे। और इन कामों को वह इतनी विनय, इतनी नम्रता और सहृदयता से करता कि अमलों को भी उस पर संदेह की जगह विश्वास होता था। वह कैदियों