पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
482:प्रेमचंद रचनावली-5
 

सलीम उत्तेजित हो गया-यह फिजूल की बात है। जिस चीज की बुनियाद जब्र पर है, उस पर हक और इंसाफ का कोई असर नहीं पड़ सकता। अमर ने पूछा- क्या तुम इसे तस्लीम नहीं करते कि दुनिया का इंतजाम हक और इंसाफ पर कायम है और हरेक इंसान के दिल की गहराइयों के अंदर वह तार मौजूद है, जो कुरबानियों से इंकार उठता है? सलीम ने कहा-नहीं, मैं इसे तस्लीम नहीं करता। दुनिया का इंतजाम खुदगरजी और जोर पर कायम है और ऐसे बहुत कम इंसान हैं जिनके दिल की गहराइयों के अंदर वह तार मौजूद हो। अमर ने मुस्कराकर कहा-तुम तो सरकार के खैरख्वाह नौकर थे। तुम जेल में कैसे आ गए? सलीम हंसा-तुम्हारे इश्क में । 'दादा को किसकी इश्क था? अपने बेटे का।

    • और सुखदा को?

अपने शौहर का। "और सकीना को? और मुन्नी को? और इन सैकड़ों आदमियों को, जो तरह-तरह की सख्तियां झेल रहे हैं। | " अच्छा मान लिया कि कुछ लोगों के दिल की गहराइयों के अंदर यह तार है, मगर ऐसे आदमी कितने हैं? मैं कहता हूं ऐसा कोई आदमी नहीं जिसके अंदर हमदर्दी का तार न हो। हां, किसी पर जल्द असर होता है, किसी पर देर में और कुछ ऐसे गरज के बंदे भी हैं जिन पर शायद कभो न हो। सलीम ने हारकर कहा-तो आखिर का तुम चाहते क्यों हो? लगान हैमरे नहीं सकते। वह लोग कहते हैं; हम लेकर छोड़ेंगे। तो क्या करें? अपना सब कुछ कुर्क हो जाने दें? अगर हम कुछ कहते हैं, तो हमारे ऊपर गोलियां चलती हैं। नहीं बोलते, ती तबाह हो जाते हैं। फिर दूसरा कौन-सी रास्ता हैं? हम जितना ही दबते जाते हैं, उतना ही वह लोग और होते हैं। मरने वाला बेशक दिलों में रहम पैदा कर सकता हैं; लेकिन मारने वाला खौफ पैदा कर सकता है, जो रहम से कहीं ज्यादा असर डालने वाली चीज है। अमर ने इसे प्रश्न पर महीनों विचार किया था। वह मानता था, संसार में पशुबले का प्रभुत्व है किंतु पशुवल को भी न्याय बल की शरण लेनी पड़ती है। आज बलवान-से-बलवान राष्ट्र में भी यह साहम नहीं है कि वह किसी निर्बल राष्ट्र पर खुल्लम-खुल्ला यह कहकर हमला करे कि 'हम तुम्हारे ऊपर राज करना चाहते हैं, इसलिए तुम हमारे अधीन हो जाओ'। उसे अपने पक्ष को न्याय-संगत दिखाने के लिए कोई-न-कोई बहाना तलाश करना पड़ता है। बोला-अगर तुम्हारा खयाल हैं कि खून और कत्ल से किसी कौम की नजात हो सकती है, तो तुम सख्त गलती पर हो। मैं इसे नजात नहीं कहता कि एक जमाअत के हाथों से ताकत निकालकर दूसरे जमाअत के हाथों में आ जाय और वह भी तलवार के जोर से राज.करे। मैं नजात उसे कहता हूं कि इंसान में इंसानियत आ जाय और इंसानियत की जङ्ग बेइंसाफी और