पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४८४

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484:प्रेमचंद रचनावली-5
 

पठानिन की गिरफ्तारी ने शहर में ऐसी हलचल मचा दी, जैसी किसी को आशा न थी। जीर्ण वृद्धावस्था में इस कठोर तपस्या ने मृतकों में भी जीवन डाल दिया, भीरू और स्वार्थ-सेवियों को भी कर्मक्षेत्र में ला खड़ा किया। लेकिन ऐसे निर्लज्जों की अब भी कमी न थी, जो कहते थे--इसके लिए जोवन में अब क्या धरा है? मरना ही तो है। बाहर न मरी, जेल में मरी। हमें तो अभी बहुत दिन जीना है, बहुत कुछ करना है, हम आग में कैसे कूदें? संध्या का समय है। मजदूर अपने-अपने काम छोड़कर, छोटे दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें बंद करके घटनास्थल की ओर भागे चले जा रहे हैं। पठानिन अब वहां नहीं है, जेल पहुंच गई होगी। हथियारबंद पुलिस का पहरा है, कोई जलसा नहीं हो सकता, कोई भाषण नहीं हो सकता, बहुत-से आदमियों की जमा होना भी ख़तरनाक है, पर इस समय कोई कुछ नहीं सोचता, किसी को कुछ दिखाई नहीं देता--सब किमी वेगमय प्रवाह में बहे जा रहे हैं। एक क्षण में सारा मैदान जन-समुह से भर गया। सहसा लोगों ने देखा, एक आदमी इंटी के एक ढेर पर खड़ा कुछ कह रहा है। चारों ओर से दौड़-दौड़कर लोग वहां जमा हो गए-जन-समूह का एक विराट 'मागर उमड़ा हुआ था। यह आदमी कौन है? लाल। समकान्त' जिनकी बहू जेल में हैं, जिनका लड़का जेन म 'अच्छा, यह लाला है । भगवान् बुद्धि दे, तो इस तरह। पाप में जो कुछ कमाया वह पुण्य में लुटा रहे हैं। "है बड़ा भगवान् । " भगवान् न होता, तो बुदाप में इतना जम कैसे कमाना । "सुनो, मुनो ! वह दिन आएगा, जब इमी जगह गरीबी के घर बनाई और नहीं हो पाता गिरफ्तार हुई हैं, वहीं एक चौक बनेगा और उसके बीच में माना की प्रतिमा रचट्ठी की जाएगी। बोली माता पठानिन की जय ।। दस हजार गलों में 'माता की जय !' को न निकलती है विकल 'इनन्, 'भोर माना गरीबों की हाय संमार में कोई आश्रय न पाका अाकाशवामियों में फट कर दी है। "सुनो, सुनो !!!

    • माता ने अपने बालकों के लिए प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। हमारे ओर आपके भी

बालक हैं। हम और आप अपन चालकों के लिए क्या करना चाहते हैं आज इमका निश्चय करना होगा।' शोर मचता है-हड़ताल, हड़तान्न । "हां, हड्तान कीजिए, मगर वह इतान्न, एक या दो दिन को न हो, वह उसे वक्त तक रहेगी, जब तक हमारे नगर के विधाता हमारी आवाज न सुनेगे। हम गरीब हैं, दोन हैं, दुखी हैं, लेकिन बड़े आदमी अगर जग शांतचन होकर ध्यान करेंगे, तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि दीन-दुत्री प्राणियां हो ने उन्हें बड़ा आदमी बना दिया है। ये बड़े बड़े महल जान हथेली पर रखकर कौन बनाता है। इन कपडं की मिलों में कौन काम करता है? प्रात: