पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४८५

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कर्मभूमि:485
 

ल द्वार पर दूध और मक्खन लेकर कौन आवाज देता है? मिठाइयां और फल लेकर कौन बड़े आदमियों के नाश्ते के समय पहुंचता है? सफाई कौन करता है, कपड़े कौन धोता है? सबेरे अखबार और चिट्ठियां लेकर कौन पहुंचता है। शहर के तीन-चौथाई आदमी एक-चौथाई के लिए अपना रक्त जला रहे हैं। इसका प्रमाद यही मिलता है कि उन्हें रहने के लिए स्थान नहीं । एक बंगले के लिए कई बीघे जमीन चाहिए। हमारे बड़े आदमी साफ-सुथरी हवा और खुली हुई जगह चाहते हैं। उन्हें यह खबर नहीं है कि जहां असंख्य प्राणी दुर्गध और अंधकार में पड़े भंयकर रोगों से मर-मरकर रोग के कीड़े फैला रहे हों, वहां खुले हुए बंगले में रहकर भी वह सुरक्षित नहीं हैं, यह किसकी जिम्मेदार है कि शहर के छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी आदमी स्वस्थ रह सकें? अगर म्युनिसिपेन्निटी इम प्रधान कर्तव्य को नहीं पूरा कर सकती, तो उसे तोड़ देना चाहिए। रईसों और अमीरों की काठियों के लिए, बगीचों के लिए, महलों के लिए क्यों इतनी उदारता ३ जमीन दे दी जानी है? इसलिए कि हमारी म्युनिसिपैलिटी गरीबों की जान का कोई मूल्य नहीं समझती। उम रुपये चाहिए, इसलिए कि बड़े-बड़े अधिकारियों को बड़ी-बड़ी तलव दी जाए। वह शहर का विशाल भवनों से अलंकृत कर देना चाहती हैं, उसे स्वर्ग की तरह मुंदर बना देना चाहती हैं, पर जहां को अंधेरी दुर्गधपूर्ण गलियों में जनता र ह रही हो, वहा इन्द्र विन्द भवन में क्या होगा? यह तो वही बात है कि कोई देह के कोढ़ को रेशमी वस्त्रों में छिपाकर टन्नात फिर| सन्जय ! अन्याय करना जितना ३दा पाप है, उतना ही बड़ा अन्याय गहना भी है। अज निश्चय कर लो कि तुप न होंगे। यह महल और बगल नगर की दुर्वल दह पर छाले हैं, मसवृद्धि हैं। इन मसवृद्धियों को काटकर फंकना हो। जिस जमीन पर हम ग्व: है, वहां कम-से-कम दो हजार छोटे- छोटे मंदर घर बन सकते हैं, जिनमें कम से कम दस हजार प्राणी आराम से रह सकते हैं। मगर यह सारी जमीन चार-पाच बंगलां के लिए बेची जा रही है। युनपैलिटी को दस लाख रुपये मिल रहे है। इसे वह कैसे छोड़ शहर के दस हजार मजदूरों की जान दस लाख के बराबर भी नहीं। एकाएक पीछ के आदग्नि न गार मचाया- पुलिस ' पुलिस आई। कुछ लोग भागे, कुछ लोग अमटकर और आगे बढ़ गए। लानी मभरमकान्त बलि -- भागो मत, ग म्रत पुलिस मुझे गिरफ्तार करेगी। मैं उसका अपराधी हैं, और में ही क्यों, मेरा सारा घर उसका अपराधी है। मेरा लड़का जेल में है, मेरी बहू और पाता जेल में हैं। मेरे लिए अब जल के सिवा और कहां ठिकाना है? मैं तो जाता हूं। { पुलिस से) वहा ठहरिए माह में दुद आ रहा हूँ! में तो जाता हूं, मगर यह कहे जाता हूं कि अगर लौटकर मैंने यहां गरीब भाइयों के घरों की पातियां फूलों की भत लहलहाती न देखी, तो यहीं मेरी चिता बनेगी। लाला समरकान्त कूदकर ईंटों के टोने से नीचे आए और भीड़ को चीर: हुए जाकर पुलिस कप्तान के पास खड़े हो गए। लागे तैयार थी, कप्तान ने उन्हें लारी में बैठाया। लारी चल दी। | "लाला सरकान्त की जय ! की गहरी, हार्दिक वेदना से भरी हुई ध्वनि किसी वधुए पशु की भांति तड़पती, छटपटातो ऊपर को उठी, मानो परवशता के बंधन को तोड़कर निकल जाना चाहती हो।