पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
486:प्रेमचंद रचनावली-5
 

एक समूह लारी के पीछे दौड़ा; अपने नेता को छुड़ाने के लिए नहीं, केवल श्रद्धा के आवेश में, मानो कोई प्रसाद, कोई आशीर्वाद पाने की सरल उमंग में। जब लारी गर्द में लुप्त हो गई, तो लोग लौट पड़े।

    • यह कौन खड़ा बोल रहा है?"

"कोई औरत जान पड़ती है। "कोई भले घर की औरत है। " अरे यह तो वही हैं, लालाजी का समधिन, रेणुकादेवी। “अच्छा । जिन्होंने पाठशाले के नाम अपनी सारी जमा-था लिख दी।

  • "सुनो ! सुनो ।'

"प्यारे भाइयो, लाला समरकान्त जैसा योगी जिस सुख के लोभ से चला'मान हो गया, वह कोई बड़ा भारी सुख होगा, फिर मैं तो औरत हूं, और औरत लोभिन होती ही है। अपिके शास्त्र-पुराण सब यही कहते हैं। फिर मैं उस लोभ को कैसे रोकें? मैं धनवान् की बहू . धनवान की स्त्री, भोग-विलास में लिप्त रहने वाली, भजन- भाव में मगन रहने वाली, मैं क्या ज्ञानं गरीबों को क्या कष्ट है, उन पर क्या बीतती है। लेकिन इस नगर ने मेरी लड़की छीन ली, मेरी जायदाद छीन ली, और अब मैं भी तुम लोगों ही की तरह गरीब हूँ। अब मुझे इम विश्वनाथ की पुरी में एक झोंपड़ा बनवाने की लालसा है। आपको छोड़कर मैं और किसके पास मांगने जा। यह नगर तुम्हारा है। इसकी एक-एक अंगुल जमीन तुम्हारी है। तुम्हीं इसके राजा हो। मगर सच्चे राजा को भात तुम भी त्यागी हो। राजा हरिश्चन्द्र की भांति अपना सर्वस्त दूसरों को देकर, भिखारियों को अमीर बनाकर, तुम आज भिखारी दो गए हो। जानते हो पर छल से खोया हुआ राज्य तुमको कैसे मिलेगा? तुम डोम के हाथों बिक चुके। अब तुम्हें राहिला और चौथ्या को त्यागना पड़ेगा। तभी देवता तुम्हारे ऊपर प्रसन्न होंगे। मेरा मन कह रहा है कि देवताओं में तुम्हारा राज्य दिलाने की बातचीत हो रही है। आज नहीं तो कल तुम्हारा राज्य तुम्हार अधिकार में आ जाएगा। उस वक्त मुझे भूल न जाना। मैं तुम्हारे दरबार में अपना प्रार्थना-पत्र पेश किए जा रही हूं।" | सहसा पीछे से शोर मचा फिर पुलिस आ गई ।

  • आने दो। उनका काम है अपराधियों को पकड़ना। हम अपराधी हैं। गिरफ्तार न कर

लिए गए, तो आज नगर में डाका मारेंगे, चोरी करेंगे, या कोई षड्यंत्र रचेंगे। मैं कहती हूँ, कोई संस्था जो जनता पर न्यायबल से नहीं, पशुबल से शासन करती है, वह लुटेरों की संस्था है। जो गरीबों का हक लूटकर खुद मालदार हो रहे हैं, दूसरों के अधिकार छीनकर अधिकारी बने हुए हैं, वास्तव में वही लुटेरे हैं। भाइयो, मैं तो जाती हूं, मगर मेरा प्रार्थना-पत्र आपके सामने है। इस लुटेरी म्युनिसिपैलिटी को ऐमा सबक दो कि फिर उसे गरीबों को कुचलने का साहस न हो। जो तुम्हें शैद, उसके पांव में कांटे बनकर चुभ जाओ। कल से ऐसी हड़ताल करा कि धनियों और अधिकारियों को तुम्हारी शक्ति का अनुभव हो जाय, उन्हें विदित हो जाय कि तुम्हारे महयोग के बिना वे न धन को भोग सकते हैं, न अधिकार को उन्हें दिखा दो कि तुम्हीं उनके हाय हो, तुम्हीं उनके पांव हो, तुम्हारे बगैर वे अपंग हैं।" | वह टीले से नोचे उतरकर पुलिस कर्मचारियों की ओर चली तो सारा जन-समूह, हृदय में उमड़कर आंखों में रुक जाने वाले आंसुओं की भांति, उनकी ओर ताकत रह गया। बाहर