पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४८७

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कर्मभूमि:487
 

निकलकर मर्यादा का उल्लंघन कैसे करें? वीरों के आंसू बाहर निकलकर सूखते नहीं, वृक्षों के रस की भांति भीतर ही रहकर वृक्ष को पल्लवित और पुष्पित कर देते हैं। इतने बड़े समूह में एक कंठ से भी जयघोष नहीं निकला। क्रिया-शक्ति अंतर्मुखी हो गई थी, मगर जब रेणुका मोटर में बैठ गईं और मोटर चलीं, तो श्रद्धा की वह लहर मर्यादाओं को तोड़कर एक पतली गहरी, वेगमयी धारा में निकल पड़ी। एक बूढ़े आदमी ने डांटकर कहा--जय-जय बहूरा कर चुके। अब घर जाकर आटा- दाल जमा कर लो। कल से लंबी हड़ताल करनी है। | दुसरे आदमी ने समर्थन किया--और ए ! यह नहीं कि यहां तो गला फाइ-फाई चिल्लाएं और सवेरा होते ही अपने-अपने काम पर चल दिए। अच्छा, यह कौन खड़ा हो गया? 'वाह, इतना भी नहीं पहचानते? डॉक्टर साहब हैं। डॉक्टर साहब भी आ गए? अब तो फतह है ।। "कैसे..कैसे शरीफ आदमी हमारो तरफ में लड़ रहे हैं पूछो, इन चारों को क्या लेना है, जो अपना मुख-चैन छोड़करे, अपने बराबरवालों से दुश्मनी मोल लेकर, जान हथेली पर लिए तैयार हैं।" हमारे ऊपर अल्लाह को रहम है। इन डॉक्टर साहब ने पिछले दिनों जव लेग का गि फैला था, गरीबी की ऐसी रिपुदमत की कि वाह । जिनके पास अपने भाई-बंद तक न बड़े होते थे, वहां बेधड़क चले जाते थे और ना. दारू, कृपया-पैसा, सच तरह की भदट तैयार ! हमारे हाफिजज्ञी वो कहने थे यह अल्लाह की फरिश्ता है।। "सुनो, स्नो, बकवाम करने को रान - भर पट्टी है। 'भाइयो पिछली बार जब हड़ताल की थी, उसका क्या नतीजा हुआ? अगर वैसी ही हडताल हुई, तो उसे अपना ही नुकसान होगा। हममें से कुछ चुन लिए जाएंगे, बाकी आदमी मतभेद हो जाने के कारण आपस में लड़ते रहेंगे और असली उद्देय की किसी को सुध न रहेगी। परनों के हटते ही पुरानी अदावतें निकाली जाने लगेंगी, गडे दे उखाड़े जाने लरे, न कोई संग्टन रह जाएगा, न कोई जिम्मेदारी। सभी पर आतंक छा जाएगा, इसलिए अपने दिल को टटोलकर देख लो। अगर उसमें कच्चापन हो, तो हड्तार का विचार दिल से निकाल डालो। ऐसी हड़ताल से दुर्गध और गंदगी में मरते जा कहीं अच्छा है। अगर तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारा दिल भीतर से मजबूत है, उसमें हार सहने की, भूखों मरने को, कष्ट झेलने की सामर्थ्य है, तो हड़ताल करो। प्रतिज्ञा कर लो कि जब तक हडताल रहेगी, तुम अदावते भूल जाओगे, नफे-नुकसान की परवाह न करोगे। तुमने कबड्डी तो खेली ही होगी। कबड्डी में अक्सर ऐसा होता है कि एक तरफ से सब गुइयां मर जाते हैं केवल एक खिलाड़ी रह जाता है, मगर वह एक खिलाड़ी भी उसी तरह कानून कायदे से खेलता चला जाता है। उसे अंत तक आशा बनी रहती है कि वह अपने मरे गुइको जिला लेगा और सब-के-सब फिर पूरी शक्ति से बाजी जीतने का उद्योग करेंगे। हरेक खिलाड़ी का एक ही उद्देश्य होता है-पाला जीतना। इसके सिवा उस समय उसके मन में कोई भाव नहीं होता। किस गुइयां ने उसे कबै गाली दी थी, कब उसका कनकौआ फाड़ डाला था, या कब उसको घूसी मारकर भागा था, इसकी उसे जरा भी याद नहीं आती। उसी तरह इस समय तुम्हें अपना मन बनाना