पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४८९

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कर्मभूमि:489
 

बच्चे सड़े हुए, अंधेरे, दुर्गंध और रोग से भरे हुए बिलों में नहीं रहते? लेकिन यह जमाने की खधी है कि तुम अन्याय की रक्षा करने के लिए, अपने ही बाल-बच्चों का गला घोंटने के लिए तैयार खड़े हो । कप्तान ने भीड़ के अंदर जाकर शान्तिकुमार का हाथ पकड़ लिया और उन्हें साथ लिए हुए लौटा। सहसा नैना सामने से आकर खड़ी हो गई। शान्तिकुमार ने चौंककर पूछा-तुम किधर से नैना? सेठजी और देवीजी तो चल दिए, अब मेरी बारी है। नैना मुस्कराकर बोली-और आपके बाद मेरी।। ।' 'नहीं, कहीं ऐसा अनर्थ न करना। सब कुछ तुम्हारे ही ऊपर है। नैना ने कुछ जवाब न दिया। कप्तान डॉक्टर को लिए हुए आगे बढ़ गया। उधर सभा में शोर मचा हुआ था। अब उनका क्या कर्तव्य है, इसका निश्चय वह लोग न कर पाते थे। उनको दशा पिघली हुई धातु की -सी थी। उसे जिस तरफ चाहे मोड़ सकते हैं। कोई भी चलता हुआ आदमी उनका नेता बनकर उन्हें जिस तरफ चाहे ले जा सकता था—सबसे ज्यादा आसानी के साथ शाँतभंग की अरि। चित्त की उस दशा में, जो इन ताबड़तोड़ गिरफ्तारियों से शांतिपध- विमख हो रहा था, बहुत संभव था कि वे पुलिस पर जाकर पत्थर फेंकने लगते, या बाजार लटन पर आया तो जाते। उसी वक्त नैन उनके सामने जाकर खड़ी हो गई। वह अपनी बच्ची पर सैर करने निकली थी। रास्ते में उसने लाला समरकान्त और रेणुकादेवी के पकड़े जाने की खबर सुनी। उसने तुरंत कोचवान को इस मैदान की ओर चलने को कहा, और दौड़ी चली आ रही थी। अब तक उसने अपने पति और ससुर को मर्यादा का पालन किया था। अपनी ओर से कोई ऐसा काम न करना चाहती थी कि ससुराल वालों का दिल दुखे, या उनके असंतोष का कारण हो। लेकिन यह खबर पाकर वह संयत न रह सकी। मनीराम जाने से बाहर हो जाएंगे, लाला धनीराम छाती पीटने लगे, उसे गम नहीं। कोई उसे रोक ले, तो वह कदाचित आत्म- हत्या कर बैठे। वह स्वभाव से ही लज्जाशील थी। घर के एकांत में बैठकर वह चाहे भूखों मर जाती, लेकिन बाहर निकलकर किसी से सवाल कर सके लिए अस?" था। रोज जलसे होते थे, लेकिन उसे कभी कुछ भाषण करने का साहस नहीं हुआ। यह नहा कि उसके पास विचारों का अभाव था, अथवा वह अपने विचारों को व्यक्त न कर सकती थी। नहीं, केवल इसलिए कि जनता के सामने खड़े होने में उसे संकोच होता था। या यों कहो कि भीतर की पुकार कभी इतनी प्रबल न हुई कि मोह और आलस्य के बंधनों को तोड़ देती। बाज ऐसे जानवर भी होते हैं, जिनमें एक विशेष आसन होता है। उन्हें आप मार डालिए। पर आगे कदम न उठाएंगे। लेकिन उस मार्मिक स्थान पर उंगली रखते हो उनमें एक नया उत्साह, एक नया जीवन चमक उठता है। लाला समकान्ति की गिरफ्तारी ने नैना के हृदय में उसी मर्मस्थल को स्पर्श कर लिया। वह जोवन में पहली बार जनता के सामने खड़ी हुई, निश्शंक, निश्चल, एक नई प्रतिभा, एक नई प्रांजलता से आभासित पूर्णिमा के रन प्रकाश में ईंटों के टीले पर खड़ी जब उसने अपने कोमल किंतु गहरे कंठ-स्वर से जनता को संबोधित किया, तो जैसे सारी प्रकृति नि:स्तब्ध हो गई। | "सज्जनो, मैं लाला समरकान्त की बेटी और लाला धनीराम की बहू हूँ। मेरा प्यारा भाई जेल में है, मेरी प्यारी भावज जेल में हैं, मेरी सोने-सा भतीजी जेल में है. मेरे पिताजी भो