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52 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


दलाल हंसकर बोला-बाबूजी, बस ऐसी बात कह देते हैं कि वाह !आपका हुक्म हो जाय तो हजार पांच सौ आपके ऊपर निछावर कर दें। हम लोग आदमी का मिजाज देखते हैं, बाबूजी । भगवान् ने चाहा तो आज मैं सौदा करके ही उठूंगा।

दलाल ने संदूकची से दो चीजें निकाली, एक तो नए फैशन का जड़ाऊ कंगन था और दूसरी कानों का रिंग। दोनों ही चीजें अपूर्व थीं। ऐसी चमक थी मानो दीपक जल रहा हो। दस बजे थे, दयानाथ दफ्तर जा चुके थे, वह भी भोजन करने जा रहा था। समय बिल्कुल न था, लेकिन इन दोनों चीजों को देखकर उसे किसी बात की सुध ही न रही। दोनों केस लिए हुए घर में आया। उसके हाथ में केस देखते ही दोनों स्त्रियां टूट पड़ीं और उन चीजों को निकाल- निकालकर देखने लगीं। उनकी चमक-दमक ने उन्हें ऐसा मोहित कर लिया कि गुण-दोष की विवेचना करने की उनमें शक्ति ही न रही।

जागेश्वरी-आजकल की चीजों के सामने तो पुरानी चीजें कुछ जंचती ही नहीं।

जालपा-मुझे तो उन पुरानी चीजों को देखकर कै आने लगती है। न जाने उन दिनों औरतें कैसे पहनती थीं।

रमा ने मुस्कराकर कहा-तो दोनों चीजें पसंद हैं न?

जालपा-पसंद क्यों नहीं हैं,अम्मांजी, तुम ले लो।

जागेश्वरी ने अपनी मनोव्यथा छिपाने के लिए सिर झुका लिया। जिसका सारा जीवन गृहस्थी की चिंताओं में कट गया, वह आज क्या स्वप्न में भी इन गहनों के पहनने की आशा कर सकती थी । आह । उस दुखिया के जीवन की कोई साध ही न पूरी हुई। पति की आय ही कभी इतनी न हुई कि बाल-बच्चों के पालन-पोषण के उपरांत कुछ बचता। जब से घर की स्वामिनी हुई, तभी से मानो उसकी तपश्चर्या का आरंभ हुआ और सारी लालसाएं एक-एक करके धूल में मिल गईं। उसने उन आभूषणों की ओर से आखें हटा लीं। उनमें इतना आकर्षण था कि उनकी ओर ताकते हुए वह डरती थी। कहीं उसकी विरक्ति का परदा न खुल जाय। बोली- मैं लेकर क्या करूंगी बेटी मेरे पहनने-ओढने के दिन तो निकल गए। कौन लाया है बेटा? क्या दाम हैं इनके?

रमानाथ–एक सर्राफ दिखाने लाया है, अभी दाम-आम नहीं पूछे, मगर ऊंचे दाम होंगे। लेना तो था ही नहीं, दाम पूछकर क्या करता ?

जालपा–लेना ही नहीं था, तो यहां लाए क्यों?

जालपा ने यह शब्द इतने वेश में आकर कहे कि रमा खिसिया गया। उनमें इतनी उत्तेजना, इतना तिरस्कार भरा हुआ था कि इन गहनों को लौटा ले जाने की उसकी हिम्मत न पड़ी। बोला-तो ले लूं?

जालपा-अम्मां लेने ही नही कहतीं तो लेकर क्या करोगे? क्या मुफ्त में दे रहा है?

रमानाथ–समझ लो मुफ्त ही मिलते हैं।

जालपा-सुनती हो अम्माजी, इनकी बातें। आप जाकर लौटा आइए। जब हाथ में रुपये होंगे, तो बहुत गहने मिलेंगे।

जागेश्वरी ने मोहासक्त स्वर में कहा–रुपये अभी तो नहीं मांगता?

जालपा-उधार भी देगा, तो सूद तो लगा ही लेगा?

रमानाथ-तो लौटा दें? एक बात चटपट तय कर डालो। लेना हो, ले लो, न लेना हो, तो